भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html , http://www.geocities.com/ggajendra   आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha   258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै। इंटरनेटपर मैथिलीक पहिल उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि, जे http://www.videha.co.in/   पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

 

(c)२०००-२०२२. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। सह-सम्पादक: डॉ उमेश मंडल। सहायक सम्पादक: राम वि‍लास साहु, नन्द विलास राय, सन्दीप कुमार साफी आ मुन्नाजी (मनोज कुमार कर्ण)। सम्पादक- नाटक-रंगमंच-चलचित्र- बेचन ठाकुर। सम्पादक- सूचना-सम्पर्क-समाद- पूनम मंडल। सम्पादक -स्त्री कोना- इरा मल्लिक।

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि,'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार ऐ ई-पत्रिकाकेँ छै, आ से हानि-लाभ रहित आधारपर छै आ तैँ ऐ लेल कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत।  एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

स्थायी स्तम्भ जेना मिथिला-रत्न, मिथिलाक खोज, विदेह पेटार आ सूचना-संपर्क-अन्वेषण सभ अंकमे समान अछि, ताहि हेतु ई सभ स्तम्भ सभ अंकमे नइ देल जाइत अछि, ई सभ स्तम्भ देखबा लेल क्लिक करू नीचाँ देल विदेहक 346म आ 347 म अंक, ऐ दुनू अंकमे सम्मिलित रूपेँ ई सभ स्तम्भ देल गेल अछि।

“विदेह” ई-पत्रिका: देवनागरी वर्सन

“विदेह” ई-पत्रिका: मिथिलाक्षर वर्सन

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Friday, December 31, 2010

राजकमल चौधरी आ आन लेखकक रचनाक चोरि पंकज पराशर प्रसंग



पंकज पराशरसुशीला झा/ सिन्धुनाथ झा द्वारा कएल साहित्यिक चोरीक पर्दाफासक बादो मैथिलीमे एहन घटना नव साहित्यकार द्वारा भऽ रहल अछि। जँ मूल कारण तकबै तँ जे लोक वा संस्था पंकज पराशरकेँ बढ़वा देलक सएह आब नव साहित्यकारकेँ साहित्यिक चोरी लेल प्रेरित कऽ रहल अछि। दिलीप कुमार झा केर आगुआइमे मैथिली साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समितिआदर्श नगरमधुबनीसँ 2014मे प्रकाशित दीप नारायण विद्यार्थी केर गजल संग्रह "जे कहि नञि सकलहुँसाहित्यिक चोरी आ सीनाजोरीक एकटा घृणित उदाहरण अछि। ऐ किताबमे दीप नारायण विद्यार्थी मधुबनीक संस्था ओ ओकर कर्ता-धर्ता दिलीप कुमार झा केर सहयोगसँ आशीष अनचिन्हारक 2011 मे प्रकाशित पोथी "अनचिन्हार आखर"आ अही नामसँ 200सँ चलि रहल ब्लाग ओ फेसबुकपर पसरल आशीष अनचिन्हारक लेखकेँ चोरा कऽ अपन पोथीमे अपन नामसँ लेख रूपमे दऽ देलन्हि आ ओइमे रेफरेन्सक रूपमे "अनचिन्हार आखरकेर कतौ चर्चा नै अछि।
आगू बढ़बासँ पहिने एकटा स्क्रीनशाट राखि रहल छी जे 2011 केर अछि आ जाहिमे आशीष अनचिन्हार अपन मेलसँ दीप नारायण विद्यार्थीकेँ "अनचिन्हार आखरपोथी मेलसँ पठेने छथि।

ई आश्चर्यक गप्प नै कारण दीपनारयण समेत बहुत लेखक अनचिन्हार आखर ब्लागसँ जुड़ल छथि छलाह आ हुनको सभकेँ ई पठाएल गेलन्हि। ओना आपत्ति करऽ बला कहि सकै छथि जे पारिभाषिक शब्दावली एकै होइत छै मुदा धेआन ई देबऽ पड़त जे 2008 मे शुरू भेल अनचिन्हार आखर ब्लाग आ तही नामसँ 2011मे प्रकाशित किताब दूनूसँ दीप नारायण विद्यार्थी जुड़ल छलाह। आ 2008सँ पहिने मैथिलीमे गजलक पारिभाषिक शब्दावली तँ छलैहे नै तखन ओ कोना लेलन्हि। कहऽ बला ईहो कहि सकै छथि जे दीप नारायण विद्यार्थीकेँ महान रिसर्चर  छथि। तँ आउ एक बेर किछु आर तथ्य देखी।
दीप नारायण मकताक जे परिभाषा देलनि से पूराक पूरा अनचिन्हार आखरसँ चोराएल अछि कारण "मकतामे एकहि नामक प्रयोग हेबाक चाही" से पहिल बेर मैथिलीमे "अनचिन्हारे आखरमे लिखल गेल। संसारक कोनो गजलक किताबमे ऐ तरहें नै लिखल गेल छै। स्पष्ट अछि जे ई चोरी अनचिन्हार आखरसँ भेल अछि।
दोसर जे गजलक संसारमे (चाहे ओ कोनो भाषामे किएक ने हो) सरल वार्णिक बहर अनचिन्हारे आखरसँ शुरूआत भेल छै। 2009 मे हम ई सिंद्धात ओतऽ शुरू केने रही। आन सभ तथ्यकेँ छोड़ि देल जाए तँ एक मात्र एही तथ्यपर कहल जा सकैए जे दीपनारायण विद्यार्थी साहित्यिक चोरी केने छथि। 
फेर दीप नारायणजी दुर्गा शप्तशती केर मंत्रक वर्णन करै छथि सेहो अनचिन्हारे आखरसँ लेल गेल अछि। ई स्क्रीन शाट देखू
ई पोस्ट बहुत नमहर छै तँए सभहँक स्क्रीन शाट नै लगा रहल छी मुदा पोस्ट आ पोस्ट तारीख देखि अहाँ सभकेँ बहुत किछु बुझा गेल हएत।
संगे-संग गजल नव विधा की पुरान तैपर सेहो आलेख छल तकरो सक्रीन शाट देखू। सप्ष्ट अछि ईहो तथ्य चोराएल गेल अछि
ऐ केर अतिरिक्त सभ तरहक पराभाषिक शब्दावली आ ओकर कहबाक शैली अनचिन्हारे आखरसँ लेल गेल अछि पाठक लेल अनचिन्हार आखर आ दीपनारायण केर आलेख दूनू ऐठाम उपल्बध करबाओल जा रहल अछि जाहिसँ पाठक सत्यता केर जाँच करता। 2013सँ भेल आशीष  अनचिन्हारक फेसबुक संदेश बाक्समे दीपनारायणजीक लिखल किछु संदेश स्क्रीन शाट केर रूपमे राखि रहल छी जाहिसँ ई स्पष्ट हएत जे दीप नारायणजी कतऽसँ सिखलथि आ कोना सिखलथि
अनचिन्हार आखर केर लेख पढ़बाक लेल ऐ लिंकपर आउ-- https://sites.google.com/a/videha.com/videha-pothi/Home/AnchinharAakhar.pdf?attredirects=0

Ashish Anchinhar with प्रदीप पुष्प and 37 others.
नवका साहित्यिक चोर : दीप नारायण विद्यार्थी Deep Narayan Vidyarthi
पंकज पराशरसुशीला झासिन्धुनाथ झा द्वारा कएल साहित्यिक चोरीक पर्दाफासक बादो मैथिलीमे एहन घटना नव साहित्यकार द्वारा भऽ रहल अछि। जँ मूल कारण तकबै तँ जे लोक वा संस्था पंकज पराशरकेँ बढ़वा देलक सएह आब नवसाहित्यकारकेँ साहित्यिक चोरी लेल प्रेरित कऽ रहल अछि। दिलीप कुमार झा Dilip Jha केर आगुआइमे मैथिली साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समितिआदर्श नगरमधुबनीसँ 2014 मे प्रकाशित दीप नारायण विद्यार्थी केर गजल संग्रह "जे कहिनञि सकलहुँसाहित्यिक चोरी  सीनाजोरीक एकटा घृणित उदाहरण अछि।  किताबमे दीप नारायण विद्यार्थी मधुबनीक संस्था  ओकर कर्ता-धर्ता दिलीप कुमार झा केर सहयोगसँ आशीष अनचिन्हारक 2011 मे प्रकाशित पोथी"अनचिन्हार आखर",  अही नामसँ 2008 सँ चलि रहल ब्लाग  फेसबुकपर पसरल आशीष अनचिन्हारक लेखकेँ चोरा कऽ अपन पोथीमे अपन नामसँ लेख रूपमे दऽ देलन्हि  ओइमे रेफरेन्सक रूपमे "अनचिन्हार आखरकेर कतौचर्चा नै अछि
पूरा सबूत सहित पढ़बाक लेल  लिंकपर आउ-- http://www.videha.co.in/aboutme.htm
हमरा पूरा विश्वास अछि जे दीप नारायण विद्यार्थीक  घृणित कृत्यकेँ अहाँ सभ विरोध करब  साहित्य केर पक्षमे ठाढ़ हएब। जिनका सभकेँ हम टैग केलहुँ तिनकासँ क्षमामुदा  जरूरी छल

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Sanjay Jha dayiyavak nirvahan aavshyak
File a lawsuit ,hamar suggestion.
Manoj Karn मैथिली मे लोथ मानसिकताक कनेको अभाव नै ऐछ.दोसराक रचना चोरा अपना नामे छपेवाक परम्परा सन गेल ऐछ.जकर निर्वहन सब पीढीतूरक रचनाकार रहल  थिहुनका सबकें जे एकर संरक्षक छथिप्रत्यक्ष/अप्रत्यक्षथू....थू.... छी....छी....! सँ पहिने दीपनारायण  किशन कारीगरक प्रसंग मैथिली दर्पनक बात उठल छल.जाहि मे संपादक महोदय अपन गलती स्वीकारने रहथि.सब गोटे सक्रिय भेल रहथि  करतूत पर सब चुप्प छथि !  मूक / बधिरता के की मानल जएसमर्थनस्वीकृतिबढाबा वा किछु आओर.......?
Vinit Utpal a case must be filed against Deep Narayan vidyarthi.
Yogendra Pathak Viyogi हम एहि झगड़ा सॅं हटले रहए चाहैत छलहुँ। साहित्यिक चोरीक अनुभव हमरा नहि अछि मुदा विज्ञानक क्षेत्र मे एकरा बड़ पैघ अपराध बूझल जाइत छैक। देश विदेश सब ठाम नीक नीक लोकक नोकरीओगेलैक अछिविद्यार्थीजीक वचाव कमजोर लागलतें हम  लिख रहल छी। पहिल बात जे यदि कोनो लेखक कतहु सॅं किछु उद्धरित केलनि सूत्रक उल्लेख जरूरी। एकरे कहैत छैक ‘ethics’। नहि कएने उचिते  नकल अथवा plagiarism कहलजाइत छैक। एकरा लेल बहुत रास कानूनी प्रावधान छैकयदि विद्यार्थी कें लगैत छनि जे हुनका अनेरे बदनाम कएल जा रहलनि अछि ओहो मानहानिक मोकदमा ठोकि सकैत छथिओना मामिला मोकदमा मे जेबा सॅं पूर्व  अपनहि मे यदि फरिया जाइत नीक रहैत। यदि विद्यार्थी कें कनियो लगैत होनि जे हुन्कर पक्ष कमजोर छनि एकर दूटा तरीका छैक –पहिल जे विज्ञानक क्षेत्र मे नीक जकाँ स्थापित व्यवस्था छैक – withdraw your article. माने भेल सम्पादक कें लिखल जाए जे हमरा सॅं भूल भेलहम एहि लेख कें वापस लैत छी। तखन सम्पादक अगिला अंक मे एहि तरहक सूचना छापुदेताहदोसर अछि सार्वजनिक माफीयदि विद्यार्थी कें अपना पर दृढ़ विश्वास छनि जे  कोनो गलती नहि केलनि अछि निश्चिते अनचिन्हार कें नीक जकाँ चिन्हार करथु। ओकीलक नोटिस पठा देथुन
Ashish Anchinhar निश्चित रूपसँ हमहूँ सएह चाहैत छी। ओना हमरा द्वारा किछु सबूत देल गेल अछि से  लिंक पर देखल जा सकैएhttp://www.videha.co.in/aboutme.htm  वहए कम नै अछि



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Ashish Anchinhar किछु गोटेक चुप्पी संदेहक जन्म  रहल अछि
Deep Narayan Vidyarthi आदरणीय योगेन्द्र पाठक वियोगी सर केँ गप्पसँ हम सहमत छीहम जतेक जनै छीयैक आशिष अनचिन्हारजीक नामे पोस्ट करै छी..कोनो चीजकेँ विषय बनेबा पहिने हमरा जनतबे संबंधित व्यक्ति सँ गप्प लेल जाय नीक रहितैकएहिकेँ सभगोटे सौहार्दताक संग लैल जाय...उचित समाधान  सजाक लेल हम तैयार छी...
Like · Reply · 2 · March 22 at 7:48am
Malaynath Mishra बिद्यार्थीजी अहाँ  अनचिन्हारजीक सँ कते बात सिखबाक बात हुनका इनबॉक्स मे केने छीकिएक नै हुनका सँ सीधा सम्पर्क कय समाधान तकै छीलिंक कहि रहले जे दुनू मे गुरू  शिष्य सदृश्य सम्बन्ध रहल अछि
Like · Reply · 1 · March 22 at 7:59am
Ashish Anchinhar मतलब एक तँ अहाँ चोरी करियौ  दोसर विषय बनेबासँ पहिने अहाँसँ गप्पप करत । बाह एकरे कलियुग कहै छै

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Deep Narayan Vidyarthi एहिसँ हम कखनो नै मुकरि रहल छियनि जे अनचिन्हार आखर ब्लाँगसँ अपने (आशिष अनचिन्हारजी)हमरा जोरलहुँ...ओतयसँ होसला सेहो ठीके बरहलसंगहि फोन 'हम सेहो पुछपाछ करैतरहलहुँ...परिणाम हम लगातार लिखय लगलहुँ। पोथी निकालय केँ मोन भेल सभसँ पहिने अपनहि केँ फोन केलहुँ...कहलहुँ ऐहि पोथी पर भूमिका लिख दिय...ताहि लेल हम बेर बेर फोन कयने रहिअपने हमरा टारति रहलहुँ... ओहिसमयमे कने कचोट सेहो भेल हम अमित मिश्र केँ कहबो कयलियनि ।  बात सत्य छै जे ओहि समयमे हम आओर किनका कहियनि जे हमरा लिखि देता से नै जनैत रहियैकतखन अपनेसँ लिखबैसलहुँ...एहि आलेखमे आहाँक कहब अछि...रदीफकाफियामकतामतलागजलक परिभाषा जे हम देने छियनि सेयह इहो देने अछि। कि कोनो चिजकेँ परिभाषा सेहो दु हेतैकसे कोना हेतैकहम एतबे बूझलियैक। ओना हम आलेख गजलक व्याकरण लिखनहि नै छियैकअपनलेखकियमे दु टप्पी चर्च कयने छियकि परिभाषा कहने छियकिअपने देखियैक परिभाषोक मिलान नै छैकवाँकी परिभाषा  बाहेक जे लिखल छैक   कतैसँ नहीए मिल रहल छैक। भने दुनू पोथीक पन्ना पोस्ट कयने छियनि अपने ।हमरा लग जे छल से सभक सोझा रखि देलहुँ,
Like · Reply · 1 · March 22 at 7:55am
Deep Narayan Vidyarthi ओना "गजल...दुष्यंत के बाद" ( सम्पादन : दिक्षीत दनकौरी) 1अथवा 2 मे हमरा गजलक ओहि तत्व सभक अंश भेटैऐ जे आदरणीय आशीष अनचिन्हारजी अपन पोथीमे गजलक जाहि सभ तत्वकेँ समेटनेछथि,
Deep Narayan Vidyarthi हँहमर गजल  गजलक कोनो शेर वा पाँती किनकोसँ मेल खाइत हो कृपया कहल जाउ...
Ashish Anchinhar Deep Narayan Vidyarthi यदि एखनो अहाँकेँ  लागि रहल अछि जे अहाँ अनचिन्हार आखरसँ तथ्य नै चोरेलियै तँ फेर ओइ किताबक अंश तँ सभहँक सामने दियौ जाहिमेसँ अहाँ कि कियो सरल वार्णिक बहरकगजलमे प्रयोग केना हो से देल होइ। ओहो अंश दियौ जे मकताक परिभाषा बला छै। संपादक तँ पहिनेहें लीखि चुकल छथि जे "कियो कहि सकै छथि जे पराभाषिक शब्दावली एकै होइ छै.."आब या तँ अहाँ सभहँक सामने  किताबक अंश दियौ जाहिमे सरल वार्णिक  मकताक ओहन परिभाषा होया तँ जेना वियोगी Yogendra Pathak Viyogi जी कहने छथि जँ अहाँकेँ लगैत हो जे अनेरे परेशान कएल जा रहल अछि तँहमरा उपर मानहानिक केस करू या तँ फेर संपादककेँ लीखि गलती मानू। या तँ हमरो लोक सभ सलाह देने छथिकापीराइटक केस लेल ..हम जाहि ठामसँ संदर्भ लेने छियै तिनकासँ व्यक्तिगत अनुमति लऽ कऽ केने छियै तँइ हमर चिन्ता नै करू। जनताजनार्दनकेँ सूचित कएल जाइए जे  हमरा कियो फोन नै केला। मानि लिय जँ फोन केबे केला  हम भूमिका नै लिखलियैतकर  मतलब नै जे संदर्भ नै देता। हमरा आब  बातसँ मतलब नै अछि जे हमरासँ के गजल सिखला
Ashish Anchinhar पंकज चौधरीVikash Jha, Bal Mukund Pathak Amit Mishraआदिक चुप्पीकेँ की बूझल जाए ?
Vikash Jha की विचार भैयामौनः स्वीकृति लक्षणम बुझैत हमरो कॉपीराइटक केस करबै की ? हम अहाँकेँ पोथी पीडीएफ रूपेँ रखने छी मुदा दीपनारायण विद्यार्थीजीक पोथी हमरा लग उपलब्ध नहि अछि। एहन मे किछु कोना कहिसकैत छी ?
Unlike · Reply · 1 · March 22 at 10:46am · Edited
Ashish Anchinhar लिंक पर तँ सभ देले छैhttp://www.videha.co.in/aboutme.htm जा कऽ देखि लियमौनः स्वीकृति लक्षणम पर कापीराइट तँ नै होइ छै मुदा संदेहक कोन अंत



(c).सर्वाधिकार लेखकाधीन  जतए लेखकक नाम नहि अछि ततए संपादकाधीन
Vikash Jha ठीक छैसाँझ मे पढ़लाक बाद कहैत छी !
Ashish Anchinhar लिय दैए देलहुँ एहू ठाम

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Deep Narayan Vidyarthi विकाशजी हमरा बाला पृष्टकेँ आशीष अनचिन्हारजी उपर देने छथि...देखल जाउ...
Ashish Anchinhar यदि एखनो अहाँकेँ  लागि रहल अछि जे अहाँ अनचिन्हार आखरसँ तथ्य नै चोरेलियै तँ फेर ओइ किताबक अंश तँ सभहँक सामने दियौ जाहिमेसँ अहाँ कि कियो सरल वार्णिक बहरक गजलमे प्रयोग केना हो से देलहोइ। ओहो अंश दियौ जे मकताक परिभाषा बला छै। संपादक तँ पहिनेहें लीखि चुकल छथि जे "कियो कहि सकै छथि जे पराभाषिक शब्दावली एकै होइ छै.."आब या तँ अहाँ सभहँक सामने  किताबक अंश दियौ जाहिमे सरल वार्णिक  मकताक ओहन परिभाषा होया तँ जेना वियोगी Yogendra Pathak Viyogi जी कहने छथि जँ अहाँकेँ लगैत हो जे अनेरे परेशान कएल जा रहल अछि तँहमरा उपर मानहानिक केस करू या तँ फेर संपादककेँ लीखि गलती मानू। या तँ हमरो लोक सभ सलाह देने छथिकापीराइटक केस लेल ..हम जाहि ठामसँ संदर्भ लेने छियै तिनकासँ व्यक्तिगत अनुमति लऽ कऽ केने छियै तँइ हमर चिन्ता नै करू। जनताजनार्दनकेँ सूचित कएल जाइए जे  हमरा कियो फोन नै केला। मानि लिय जँ फोन केबे केला  हम भूमिका नै लिखलियैतकर  मतलब नै जे संदर्भ नै देता। हमरा आब  बातसँ मतलब नै अछि जे हमरासँ के गजल सिखला

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Ashish Anchinhar जँ Deep Narayan Vidyarthi अनचिन्हार आखरसँ साहित्यिक चोरी नै केने छथि तँ एखन धरि  सबूत किएक नै दऽ रहल छथि जे हम अनचिन्हार आखरसँ नै ऐठामसँ गजलमे सरल वार्णिक बहरक प्रयोगसिखलहुँ। संगे-संग मकताक परिभाषाक लाइन छै तकरो  सबूत देथि जे  कहाँसँ लेलथिजँ Deep Narayan Vidyarthi सही रहतथि तँ एतेक देरमे  सभहँक सामने सबूत दऽ देने रहितथि। स्वाभाविक छै जे सबूत हुनका लग नै छनि कारण कोनो भारतीय भाषामे पहिल बेर सरल वार्णिक बहरक प्रयोग अनचिन्हार आखरपर2009मे गजेन्द्र ठाकुर केला जकरा पूरा रेफरेन्स सहित हम अपन किताबो धरिमे देलियै। मकताक  परिभाषा जे हम अपन ब्लाग  पोथीमे देने छियै  जकरा चोरी केने छथि  परिभाषा वएह रूपमे कोनो भारतीय भाषा केर गजलककिताबमे नै छै। जँ छै तँ Deep Narayan Vidyarthi एतेक देरी किए कऽ रहल छथि?प्रकाशक Dilip Jha केँ सूचना देबऽ चाहबन्हि हम जे एहन प्रकरणमे प्रकाशको केर भूमिकापर प्रश्नचिन्ह लागै छै  बड़का-बड़का प्रकाशककेँ खेद सहित किताब वापस लेबऽ पड़ल छै
Amit Mishra सर  विवादकेँ बन्द करू ।पुरा मिथिला जानैत अछि जे मैथिलीमे पसरल गजलक क्रेडिट केवल अहाँ  विदेहकेँ जाइए ।हम सब जे किछु जानैत छी से सब ड्यू टू अन्चिन्हार आखर । बात विद्यार्थी जी सेहो स्वीकार केनेछथि ।रहल बात परिभाषाक गुरू जे सिखेलनि से चेला लिगलनि ।ओनाहितो जहिया दीप बाबूक पोथी छपल तहिया धरि अन्चिन्हार आखर  गजलक परिभाषा जगजगार गेल छल ।ओनाहितो गजलक पारिभाषिक शब्द प्राचीनसँकहल जाइत रहल अछि ।हमरा नजरिमे दुर्गा सप्तशती बला उदाहरण अछि दुनूमे ।बस्स ।हम एतबे कहब जे मामलाकेँ बेसी नै घीचू ।ओहो  अहींक शिष्य छथि गजलमे ने
Unlike · Reply · 2 · March 23 at 12:45pm · Edited
Ashish Anchinhar देखियौ आब शिष्य  गुरू केर बाते नै छै। बात छै साहित्यिक चोरी केर। Deep Narayan Vidyarthi एखनो  स्वीकार नै कऽ रहल छथि जे अपन लेख लेल सामग्री अनचिन्हार आखरसँ लेला।  मानि लेबा बला बाततँ वियोगीजीYogendra Pathak Viyogi पहिने कहने छलखिन मुदा जखन Deep Narayan Vidyarthi स्वीकार नै कऽ रहल छथि तखन उपाय तँ वएह जे अंतमे वियोगी जी  आनो लोक सभ देने छथि हमराजँ दुर्गा सप्तशती बला उदाहरण अछि दुनूमे तखन ईहो फरिझौट हेबाक चाही ने जे सरल वार्णिक बहर  कहाँसँ लेलामकताक जे परिभाषा छै से कहाँसँ ?

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Jagdanand Jha हम कहब जे दिप नारायण विद्यार्थीकेँ सार्वजनिक रूपसँ एहि गप्पकेँ मानि कएएहि विवादकेँ एहिठाम विराम देल जेए ।
Jagdanand Jha विद्यार्थीजीएक लानि  लिख देने वा मानि लेने - "आभार अनचिन्हार आखरअपन मान तँ नहि घटत । गजल वा गजलक शेर सोलहो आना अपनेक अछि मुदा व्याकरणस जुरल आलेख? जखन अपने उपरमानै छी गजल सिखैमे आशीषजीक योगदान तहन हुनक सामने समर्पन किएक नहि ।
Manoj Karn मनु जीमैथिली मे आइ धरि कियो चोरि नै गछलनि.जहन गुरू चोरि करए  करबए तहन विद्यार्थी जी अपन साखजे बनबे नै केलनिकोना खराब करताह.संगे एकर प्रकाशक सेहो अपन गलती स्वीकार एहि पोथी  रचनाकार पर प्रतिबन्ध लगा अपन साख बचा सकै छथि.मुदा अखन धरिक चुप्पी सँ ओहो ऐचोरि मे समिलात बुझल जेताहमुन्ना जी
Ashish Anchinhar एखन धरि ने Deep Narayan Vidyarthi दिससँ कोनो संतोषजनक उत्तर आएल अछि  ने प्रकाशक Dilip Jha दिससँ। तकरा देखैत आब हम दोसर दिशामे जाएब।  कमेंट केर दस दिनक भीतर जँ लेखक Deep Narayan Vidyarthi संतोषजनक उत्तर नै देताह तखन हम कानूनी कारवाइ लेल स्वतंत्र रहब  एक पूरा उतरदायित्व लेखक Deep Narayan Vidyarthi केर रहतनि। संगे-संग प्रकाशक Dilip Jha केर भूमिकापर सेहो जतेक कारवाइकएल जा सकैए कएल जाएतसंगे-संग विदेहक नव अंक अबिते  चोरी प्रकरणक लिंक स्थायी भऽ जाएत  ओही लिंकक रेफरेन्स दैत साहित्य अकादेमीकेँ सेहो सूचना देल जाएत संगहि-संग आन संस्था सभकेँ सेहो सूचना देल जाएत जे Deep Narayan Vidyarthi साहित्यिक चोर छथि  हुनका कोनो कार्यक्रममे नै बजाएल जेबाक चाहीजेहन हाल पंकज पराशरकेँ भेलै निश्चित तौरपर दीपो नारायणक तेहने हाल हेतै। हम  कमेंटक माध्यमसँ दिल्लीक दूटा संस्थाक अध्यक्ष-सदस्य Sanjay Jha  संजीव सिन्हासँ आग्रह करबनि जे  अपन भविष्य सभहँक कार्यक्रममे Deep Narayan Vidyarthi केँ नै बजाबथि।..
Kavi Ekant Rajiv Jha Ehi karan Facebook par hathat kono rachna post nai karait rahait chhi
Manoj Karn स्वरचित रचना मे ' केहेन ?
Manoj Karn किए यौअहूँ दोसराक लिखल अपना नाम केलहूँ की ? हा....हा....हा....!



https://store.pothi.com/book/गजेन्द्र-ठाकुर-नित-नवल-सुभाष-चन्द्र-यादव/

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