भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

भालसरिक गाछ/ विदेह- इन्टरनेट (अंतर्जाल) पर मैथिलीक पहिल उपस्थिति

(c) २०००-२०२२ सर्वाधिकार सुरक्षित। विदेहमे प्रकाशित सभटा रचना आ आर्काइवक सर्वाधिकार रचनाकार आ संग्रहकर्त्ताक लगमे छन्हि।  भालसरिक गाछ जे सन २००० सँ याहूसिटीजपर छल http://www.geocities.com/.../bhalsarik_gachh.html , http://www.geocities.com/ggajendra   आदि लिंकपर  आ अखनो ५ जुलाइ २००४ क पोस्ट http://gajendrathakur.blogspot.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   (किछु दिन लेल http://videha.com/2004/07/bhalsarik-gachh.html   लिंकपर, स्रोत wayback machine of https://web.archive.org/web/*/videha   258 capture(s) from 2004 to 2016- http://videha.com/  भालसरिक गाछ-प्रथम मैथिली ब्लॉग / मैथिली ब्लॉगक एग्रीगेटर) केर रूपमे इन्टरनेटपर  मैथिलीक प्राचीनतम उपस्थितक रूपमे विद्यमान अछि। ई मैथिलीक पहिल इंटरनेट पत्रिका थिक जकर नाम बादमे १ जनवरी २००८ सँ "विदेह" पड़लै। इंटरनेटपर मैथिलीक पहिल उपस्थितिक यात्रा विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका धरि पहुँचल अछि, जे http://www.videha.co.in/   पर ई प्रकाशित होइत अछि। आब “भालसरिक गाछ” जालवृत्त 'विदेह' ई-पत्रिकाक प्रवक्ताक संग मैथिली भाषाक जालवृत्तक एग्रीगेटरक रूपमे प्रयुक्त भऽ रहल अछि। विदेह ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA

 

(c)२०००-२०२२. सर्वाधिकार लेखकाधीन आ जतऽ लेखकक नाम नै अछि ततऽ संपादकाधीन। विदेह- प्रथम मैथिली पाक्षिक ई-पत्रिका ISSN 2229-547X VIDEHA सम्पादक: गजेन्द्र ठाकुर। सह-सम्पादक: डॉ उमेश मंडल। सहायक सम्पादक: राम वि‍लास साहु, नन्द विलास राय, सन्दीप कुमार साफी आ मुन्नाजी (मनोज कुमार कर्ण)। सम्पादक- नाटक-रंगमंच-चलचित्र- बेचन ठाकुर। सम्पादक- सूचना-सम्पर्क-समाद- पूनम मंडल। सम्पादक -स्त्री कोना- इरा मल्लिक।

रचनाकार अपन मौलिक आ अप्रकाशित रचना (जकर मौलिकताक संपूर्ण उत्तरदायित्व लेखक गणक मध्य छन्हि) editorial.staff.videha@gmail.com केँ मेल अटैचमेण्टक रूपमेँ .doc, .docx, .rtf वा .txt फॉर्मेटमे पठा सकै छथि। एतऽ प्रकाशित रचना सभक कॉपीराइट लेखक/संग्रहकर्त्ता लोकनिक लगमे रहतन्हि,'विदेह' प्रथम मैथिली पाक्षिक ई पत्रिका मात्र एकर प्रथम प्रकाशनक/ प्रिंट-वेब आर्काइवक/ आर्काइवक अनुवादक आ आर्काइवक ई-प्रकाशन/ प्रिंट-प्रकाशनक अधिकार ऐ ई-पत्रिकाकेँ छै, आ से हानि-लाभ रहित आधारपर छै आ तैँ ऐ लेल कोनो रॊयल्टीक/ पारिश्रमिकक प्रावधान नै छै। तेँ रॉयल्टीक/ पारिश्रमिकक इच्छुक विदेहसँ नै जुड़थि, से आग्रह। रचनाक संग रचनाकार अपन संक्षिप्त परिचय आ अपन स्कैन कएल गेल फोटो पठेताह, से आशा करैत छी। रचनाक अंतमे टाइप रहय, जे ई रचना मौलिक अछि, आ पहिल प्रकाशनक हेतु विदेह (पाक्षिक) ई पत्रिकाकेँ देल जा रहल अछि। मेल प्राप्त होयबाक बाद यथासंभव शीघ्र ( सात दिनक भीतर) एकर प्रकाशनक अंकक सूचना देल जायत।  एहि ई पत्रिकाकेँ श्रीमति लक्ष्मी ठाकुर द्वारा मासक ०१ आ १५ तिथिकेँ ई प्रकाशित कएल जाइत अछि।

स्थायी स्तम्भ जेना मिथिला-रत्न, मिथिलाक खोज, विदेह पेटार आ सूचना-संपर्क-अन्वेषण सभ अंकमे समान अछि, ताहि हेतु ई सभ स्तम्भ सभ अंकमे नइ देल जाइत अछि, ई सभ स्तम्भ देखबा लेल क्लिक करू नीचाँ देल विदेहक 346म आ 347 म अंक, ऐ दुनू अंकमे सम्मिलित रूपेँ ई सभ स्तम्भ देल गेल अछि।

“विदेह” ई-पत्रिका: देवनागरी वर्सन

“विदेह” ई-पत्रिका: मिथिलाक्षर वर्सन

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Friday, December 31, 2010

राजकमल चौधरी आ आन लेखकक रचनाक चोरि पंकज पराशर प्रसंग



पंकज पराशरसुशीला झा/ सिन्धुनाथ झा द्वारा कएल साहित्यिक चोरीक पर्दाफासक बादो मैथिलीमे एहन घटना नव साहित्यकार द्वारा भऽ रहल अछि। जँ मूल कारण तकबै तँ जे लोक वा संस्था पंकज पराशरकेँ बढ़वा देलक सएह आब नव साहित्यकारकेँ साहित्यिक चोरी लेल प्रेरित कऽ रहल अछि। दिलीप कुमार झा केर आगुआइमे मैथिली साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समितिआदर्श नगरमधुबनीसँ 2014मे प्रकाशित दीप नारायण विद्यार्थी केर गजल संग्रह "जे कहि नञि सकलहुँसाहित्यिक चोरी आ सीनाजोरीक एकटा घृणित उदाहरण अछि। ऐ किताबमे दीप नारायण विद्यार्थी मधुबनीक संस्था ओ ओकर कर्ता-धर्ता दिलीप कुमार झा केर सहयोगसँ आशीष अनचिन्हारक 2011 मे प्रकाशित पोथी "अनचिन्हार आखर"आ अही नामसँ 200सँ चलि रहल ब्लाग ओ फेसबुकपर पसरल आशीष अनचिन्हारक लेखकेँ चोरा कऽ अपन पोथीमे अपन नामसँ लेख रूपमे दऽ देलन्हि आ ओइमे रेफरेन्सक रूपमे "अनचिन्हार आखरकेर कतौ चर्चा नै अछि।
आगू बढ़बासँ पहिने एकटा स्क्रीनशाट राखि रहल छी जे 2011 केर अछि आ जाहिमे आशीष अनचिन्हार अपन मेलसँ दीप नारायण विद्यार्थीकेँ "अनचिन्हार आखरपोथी मेलसँ पठेने छथि।

ई आश्चर्यक गप्प नै कारण दीपनारयण समेत बहुत लेखक अनचिन्हार आखर ब्लागसँ जुड़ल छथि छलाह आ हुनको सभकेँ ई पठाएल गेलन्हि। ओना आपत्ति करऽ बला कहि सकै छथि जे पारिभाषिक शब्दावली एकै होइत छै मुदा धेआन ई देबऽ पड़त जे 2008 मे शुरू भेल अनचिन्हार आखर ब्लाग आ तही नामसँ 2011मे प्रकाशित किताब दूनूसँ दीप नारायण विद्यार्थी जुड़ल छलाह। आ 2008सँ पहिने मैथिलीमे गजलक पारिभाषिक शब्दावली तँ छलैहे नै तखन ओ कोना लेलन्हि। कहऽ बला ईहो कहि सकै छथि जे दीप नारायण विद्यार्थीकेँ महान रिसर्चर  छथि। तँ आउ एक बेर किछु आर तथ्य देखी।
दीप नारायण मकताक जे परिभाषा देलनि से पूराक पूरा अनचिन्हार आखरसँ चोराएल अछि कारण "मकतामे एकहि नामक प्रयोग हेबाक चाही" से पहिल बेर मैथिलीमे "अनचिन्हारे आखरमे लिखल गेल। संसारक कोनो गजलक किताबमे ऐ तरहें नै लिखल गेल छै। स्पष्ट अछि जे ई चोरी अनचिन्हार आखरसँ भेल अछि।
दोसर जे गजलक संसारमे (चाहे ओ कोनो भाषामे किएक ने हो) सरल वार्णिक बहर अनचिन्हारे आखरसँ शुरूआत भेल छै। 2009 मे हम ई सिंद्धात ओतऽ शुरू केने रही। आन सभ तथ्यकेँ छोड़ि देल जाए तँ एक मात्र एही तथ्यपर कहल जा सकैए जे दीपनारायण विद्यार्थी साहित्यिक चोरी केने छथि। 
फेर दीप नारायणजी दुर्गा शप्तशती केर मंत्रक वर्णन करै छथि सेहो अनचिन्हारे आखरसँ लेल गेल अछि। ई स्क्रीन शाट देखू
ई पोस्ट बहुत नमहर छै तँए सभहँक स्क्रीन शाट नै लगा रहल छी मुदा पोस्ट आ पोस्ट तारीख देखि अहाँ सभकेँ बहुत किछु बुझा गेल हएत।
संगे-संग गजल नव विधा की पुरान तैपर सेहो आलेख छल तकरो सक्रीन शाट देखू। सप्ष्ट अछि ईहो तथ्य चोराएल गेल अछि
ऐ केर अतिरिक्त सभ तरहक पराभाषिक शब्दावली आ ओकर कहबाक शैली अनचिन्हारे आखरसँ लेल गेल अछि पाठक लेल अनचिन्हार आखर आ दीपनारायण केर आलेख दूनू ऐठाम उपल्बध करबाओल जा रहल अछि जाहिसँ पाठक सत्यता केर जाँच करता। 2013सँ भेल आशीष  अनचिन्हारक फेसबुक संदेश बाक्समे दीपनारायणजीक लिखल किछु संदेश स्क्रीन शाट केर रूपमे राखि रहल छी जाहिसँ ई स्पष्ट हएत जे दीप नारायणजी कतऽसँ सिखलथि आ कोना सिखलथि
अनचिन्हार आखर केर लेख पढ़बाक लेल ऐ लिंकपर आउ-- https://sites.google.com/a/videha.com/videha-pothi/Home/AnchinharAakhar.pdf?attredirects=0

Ashish Anchinhar with प्रदीप पुष्प and 37 others.
नवका साहित्यिक चोर : दीप नारायण विद्यार्थी Deep Narayan Vidyarthi
पंकज पराशरसुशीला झासिन्धुनाथ झा द्वारा कएल साहित्यिक चोरीक पर्दाफासक बादो मैथिलीमे एहन घटना नव साहित्यकार द्वारा भऽ रहल अछि। जँ मूल कारण तकबै तँ जे लोक वा संस्था पंकज पराशरकेँ बढ़वा देलक सएह आब नवसाहित्यकारकेँ साहित्यिक चोरी लेल प्रेरित कऽ रहल अछि। दिलीप कुमार झा Dilip Jha केर आगुआइमे मैथिली साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समितिआदर्श नगरमधुबनीसँ 2014 मे प्रकाशित दीप नारायण विद्यार्थी केर गजल संग्रह "जे कहिनञि सकलहुँसाहित्यिक चोरी  सीनाजोरीक एकटा घृणित उदाहरण अछि।  किताबमे दीप नारायण विद्यार्थी मधुबनीक संस्था  ओकर कर्ता-धर्ता दिलीप कुमार झा केर सहयोगसँ आशीष अनचिन्हारक 2011 मे प्रकाशित पोथी"अनचिन्हार आखर",  अही नामसँ 2008 सँ चलि रहल ब्लाग  फेसबुकपर पसरल आशीष अनचिन्हारक लेखकेँ चोरा कऽ अपन पोथीमे अपन नामसँ लेख रूपमे दऽ देलन्हि  ओइमे रेफरेन्सक रूपमे "अनचिन्हार आखरकेर कतौचर्चा नै अछि
पूरा सबूत सहित पढ़बाक लेल  लिंकपर आउ-- http://www.videha.co.in/aboutme.htm
हमरा पूरा विश्वास अछि जे दीप नारायण विद्यार्थीक  घृणित कृत्यकेँ अहाँ सभ विरोध करब  साहित्य केर पक्षमे ठाढ़ हएब। जिनका सभकेँ हम टैग केलहुँ तिनकासँ क्षमामुदा  जरूरी छल

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Sanjay Jha dayiyavak nirvahan aavshyak
File a lawsuit ,hamar suggestion.
Manoj Karn मैथिली मे लोथ मानसिकताक कनेको अभाव नै ऐछ.दोसराक रचना चोरा अपना नामे छपेवाक परम्परा सन गेल ऐछ.जकर निर्वहन सब पीढीतूरक रचनाकार रहल  थिहुनका सबकें जे एकर संरक्षक छथिप्रत्यक्ष/अप्रत्यक्षथू....थू.... छी....छी....! सँ पहिने दीपनारायण  किशन कारीगरक प्रसंग मैथिली दर्पनक बात उठल छल.जाहि मे संपादक महोदय अपन गलती स्वीकारने रहथि.सब गोटे सक्रिय भेल रहथि  करतूत पर सब चुप्प छथि !  मूक / बधिरता के की मानल जएसमर्थनस्वीकृतिबढाबा वा किछु आओर.......?
Vinit Utpal a case must be filed against Deep Narayan vidyarthi.
Yogendra Pathak Viyogi हम एहि झगड़ा सॅं हटले रहए चाहैत छलहुँ। साहित्यिक चोरीक अनुभव हमरा नहि अछि मुदा विज्ञानक क्षेत्र मे एकरा बड़ पैघ अपराध बूझल जाइत छैक। देश विदेश सब ठाम नीक नीक लोकक नोकरीओगेलैक अछिविद्यार्थीजीक वचाव कमजोर लागलतें हम  लिख रहल छी। पहिल बात जे यदि कोनो लेखक कतहु सॅं किछु उद्धरित केलनि सूत्रक उल्लेख जरूरी। एकरे कहैत छैक ‘ethics’। नहि कएने उचिते  नकल अथवा plagiarism कहलजाइत छैक। एकरा लेल बहुत रास कानूनी प्रावधान छैकयदि विद्यार्थी कें लगैत छनि जे हुनका अनेरे बदनाम कएल जा रहलनि अछि ओहो मानहानिक मोकदमा ठोकि सकैत छथिओना मामिला मोकदमा मे जेबा सॅं पूर्व  अपनहि मे यदि फरिया जाइत नीक रहैत। यदि विद्यार्थी कें कनियो लगैत होनि जे हुन्कर पक्ष कमजोर छनि एकर दूटा तरीका छैक –पहिल जे विज्ञानक क्षेत्र मे नीक जकाँ स्थापित व्यवस्था छैक – withdraw your article. माने भेल सम्पादक कें लिखल जाए जे हमरा सॅं भूल भेलहम एहि लेख कें वापस लैत छी। तखन सम्पादक अगिला अंक मे एहि तरहक सूचना छापुदेताहदोसर अछि सार्वजनिक माफीयदि विद्यार्थी कें अपना पर दृढ़ विश्वास छनि जे  कोनो गलती नहि केलनि अछि निश्चिते अनचिन्हार कें नीक जकाँ चिन्हार करथु। ओकीलक नोटिस पठा देथुन
Ashish Anchinhar निश्चित रूपसँ हमहूँ सएह चाहैत छी। ओना हमरा द्वारा किछु सबूत देल गेल अछि से  लिंक पर देखल जा सकैएhttp://www.videha.co.in/aboutme.htm  वहए कम नै अछि



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Ashish Anchinhar किछु गोटेक चुप्पी संदेहक जन्म  रहल अछि
Deep Narayan Vidyarthi आदरणीय योगेन्द्र पाठक वियोगी सर केँ गप्पसँ हम सहमत छीहम जतेक जनै छीयैक आशिष अनचिन्हारजीक नामे पोस्ट करै छी..कोनो चीजकेँ विषय बनेबा पहिने हमरा जनतबे संबंधित व्यक्ति सँ गप्प लेल जाय नीक रहितैकएहिकेँ सभगोटे सौहार्दताक संग लैल जाय...उचित समाधान  सजाक लेल हम तैयार छी...
Like · Reply · 2 · March 22 at 7:48am
Malaynath Mishra बिद्यार्थीजी अहाँ  अनचिन्हारजीक सँ कते बात सिखबाक बात हुनका इनबॉक्स मे केने छीकिएक नै हुनका सँ सीधा सम्पर्क कय समाधान तकै छीलिंक कहि रहले जे दुनू मे गुरू  शिष्य सदृश्य सम्बन्ध रहल अछि
Like · Reply · 1 · March 22 at 7:59am
Ashish Anchinhar मतलब एक तँ अहाँ चोरी करियौ  दोसर विषय बनेबासँ पहिने अहाँसँ गप्पप करत । बाह एकरे कलियुग कहै छै

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Deep Narayan Vidyarthi एहिसँ हम कखनो नै मुकरि रहल छियनि जे अनचिन्हार आखर ब्लाँगसँ अपने (आशिष अनचिन्हारजी)हमरा जोरलहुँ...ओतयसँ होसला सेहो ठीके बरहलसंगहि फोन 'हम सेहो पुछपाछ करैतरहलहुँ...परिणाम हम लगातार लिखय लगलहुँ। पोथी निकालय केँ मोन भेल सभसँ पहिने अपनहि केँ फोन केलहुँ...कहलहुँ ऐहि पोथी पर भूमिका लिख दिय...ताहि लेल हम बेर बेर फोन कयने रहिअपने हमरा टारति रहलहुँ... ओहिसमयमे कने कचोट सेहो भेल हम अमित मिश्र केँ कहबो कयलियनि ।  बात सत्य छै जे ओहि समयमे हम आओर किनका कहियनि जे हमरा लिखि देता से नै जनैत रहियैकतखन अपनेसँ लिखबैसलहुँ...एहि आलेखमे आहाँक कहब अछि...रदीफकाफियामकतामतलागजलक परिभाषा जे हम देने छियनि सेयह इहो देने अछि। कि कोनो चिजकेँ परिभाषा सेहो दु हेतैकसे कोना हेतैकहम एतबे बूझलियैक। ओना हम आलेख गजलक व्याकरण लिखनहि नै छियैकअपनलेखकियमे दु टप्पी चर्च कयने छियकि परिभाषा कहने छियकिअपने देखियैक परिभाषोक मिलान नै छैकवाँकी परिभाषा  बाहेक जे लिखल छैक   कतैसँ नहीए मिल रहल छैक। भने दुनू पोथीक पन्ना पोस्ट कयने छियनि अपने ।हमरा लग जे छल से सभक सोझा रखि देलहुँ,
Like · Reply · 1 · March 22 at 7:55am
Deep Narayan Vidyarthi ओना "गजल...दुष्यंत के बाद" ( सम्पादन : दिक्षीत दनकौरी) 1अथवा 2 मे हमरा गजलक ओहि तत्व सभक अंश भेटैऐ जे आदरणीय आशीष अनचिन्हारजी अपन पोथीमे गजलक जाहि सभ तत्वकेँ समेटनेछथि,
Deep Narayan Vidyarthi हँहमर गजल  गजलक कोनो शेर वा पाँती किनकोसँ मेल खाइत हो कृपया कहल जाउ...
Ashish Anchinhar Deep Narayan Vidyarthi यदि एखनो अहाँकेँ  लागि रहल अछि जे अहाँ अनचिन्हार आखरसँ तथ्य नै चोरेलियै तँ फेर ओइ किताबक अंश तँ सभहँक सामने दियौ जाहिमेसँ अहाँ कि कियो सरल वार्णिक बहरकगजलमे प्रयोग केना हो से देल होइ। ओहो अंश दियौ जे मकताक परिभाषा बला छै। संपादक तँ पहिनेहें लीखि चुकल छथि जे "कियो कहि सकै छथि जे पराभाषिक शब्दावली एकै होइ छै.."आब या तँ अहाँ सभहँक सामने  किताबक अंश दियौ जाहिमे सरल वार्णिक  मकताक ओहन परिभाषा होया तँ जेना वियोगी Yogendra Pathak Viyogi जी कहने छथि जँ अहाँकेँ लगैत हो जे अनेरे परेशान कएल जा रहल अछि तँहमरा उपर मानहानिक केस करू या तँ फेर संपादककेँ लीखि गलती मानू। या तँ हमरो लोक सभ सलाह देने छथिकापीराइटक केस लेल ..हम जाहि ठामसँ संदर्भ लेने छियै तिनकासँ व्यक्तिगत अनुमति लऽ कऽ केने छियै तँइ हमर चिन्ता नै करू। जनताजनार्दनकेँ सूचित कएल जाइए जे  हमरा कियो फोन नै केला। मानि लिय जँ फोन केबे केला  हम भूमिका नै लिखलियैतकर  मतलब नै जे संदर्भ नै देता। हमरा आब  बातसँ मतलब नै अछि जे हमरासँ के गजल सिखला
Ashish Anchinhar पंकज चौधरीVikash Jha, Bal Mukund Pathak Amit Mishraआदिक चुप्पीकेँ की बूझल जाए ?
Vikash Jha की विचार भैयामौनः स्वीकृति लक्षणम बुझैत हमरो कॉपीराइटक केस करबै की ? हम अहाँकेँ पोथी पीडीएफ रूपेँ रखने छी मुदा दीपनारायण विद्यार्थीजीक पोथी हमरा लग उपलब्ध नहि अछि। एहन मे किछु कोना कहिसकैत छी ?
Unlike · Reply · 1 · March 22 at 10:46am · Edited
Ashish Anchinhar लिंक पर तँ सभ देले छैhttp://www.videha.co.in/aboutme.htm जा कऽ देखि लियमौनः स्वीकृति लक्षणम पर कापीराइट तँ नै होइ छै मुदा संदेहक कोन अंत



(c).सर्वाधिकार लेखकाधीन  जतए लेखकक नाम नहि अछि ततए संपादकाधीन
Vikash Jha ठीक छैसाँझ मे पढ़लाक बाद कहैत छी !
Ashish Anchinhar लिय दैए देलहुँ एहू ठाम

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Deep Narayan Vidyarthi विकाशजी हमरा बाला पृष्टकेँ आशीष अनचिन्हारजी उपर देने छथि...देखल जाउ...
Ashish Anchinhar यदि एखनो अहाँकेँ  लागि रहल अछि जे अहाँ अनचिन्हार आखरसँ तथ्य नै चोरेलियै तँ फेर ओइ किताबक अंश तँ सभहँक सामने दियौ जाहिमेसँ अहाँ कि कियो सरल वार्णिक बहरक गजलमे प्रयोग केना हो से देलहोइ। ओहो अंश दियौ जे मकताक परिभाषा बला छै। संपादक तँ पहिनेहें लीखि चुकल छथि जे "कियो कहि सकै छथि जे पराभाषिक शब्दावली एकै होइ छै.."आब या तँ अहाँ सभहँक सामने  किताबक अंश दियौ जाहिमे सरल वार्णिक  मकताक ओहन परिभाषा होया तँ जेना वियोगी Yogendra Pathak Viyogi जी कहने छथि जँ अहाँकेँ लगैत हो जे अनेरे परेशान कएल जा रहल अछि तँहमरा उपर मानहानिक केस करू या तँ फेर संपादककेँ लीखि गलती मानू। या तँ हमरो लोक सभ सलाह देने छथिकापीराइटक केस लेल ..हम जाहि ठामसँ संदर्भ लेने छियै तिनकासँ व्यक्तिगत अनुमति लऽ कऽ केने छियै तँइ हमर चिन्ता नै करू। जनताजनार्दनकेँ सूचित कएल जाइए जे  हमरा कियो फोन नै केला। मानि लिय जँ फोन केबे केला  हम भूमिका नै लिखलियैतकर  मतलब नै जे संदर्भ नै देता। हमरा आब  बातसँ मतलब नै अछि जे हमरासँ के गजल सिखला

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Ashish Anchinhar जँ Deep Narayan Vidyarthi अनचिन्हार आखरसँ साहित्यिक चोरी नै केने छथि तँ एखन धरि  सबूत किएक नै दऽ रहल छथि जे हम अनचिन्हार आखरसँ नै ऐठामसँ गजलमे सरल वार्णिक बहरक प्रयोगसिखलहुँ। संगे-संग मकताक परिभाषाक लाइन छै तकरो  सबूत देथि जे  कहाँसँ लेलथिजँ Deep Narayan Vidyarthi सही रहतथि तँ एतेक देरमे  सभहँक सामने सबूत दऽ देने रहितथि। स्वाभाविक छै जे सबूत हुनका लग नै छनि कारण कोनो भारतीय भाषामे पहिल बेर सरल वार्णिक बहरक प्रयोग अनचिन्हार आखरपर2009मे गजेन्द्र ठाकुर केला जकरा पूरा रेफरेन्स सहित हम अपन किताबो धरिमे देलियै। मकताक  परिभाषा जे हम अपन ब्लाग  पोथीमे देने छियै  जकरा चोरी केने छथि  परिभाषा वएह रूपमे कोनो भारतीय भाषा केर गजलककिताबमे नै छै। जँ छै तँ Deep Narayan Vidyarthi एतेक देरी किए कऽ रहल छथि?प्रकाशक Dilip Jha केँ सूचना देबऽ चाहबन्हि हम जे एहन प्रकरणमे प्रकाशको केर भूमिकापर प्रश्नचिन्ह लागै छै  बड़का-बड़का प्रकाशककेँ खेद सहित किताब वापस लेबऽ पड़ल छै
Amit Mishra सर  विवादकेँ बन्द करू ।पुरा मिथिला जानैत अछि जे मैथिलीमे पसरल गजलक क्रेडिट केवल अहाँ  विदेहकेँ जाइए ।हम सब जे किछु जानैत छी से सब ड्यू टू अन्चिन्हार आखर । बात विद्यार्थी जी सेहो स्वीकार केनेछथि ।रहल बात परिभाषाक गुरू जे सिखेलनि से चेला लिगलनि ।ओनाहितो जहिया दीप बाबूक पोथी छपल तहिया धरि अन्चिन्हार आखर  गजलक परिभाषा जगजगार गेल छल ।ओनाहितो गजलक पारिभाषिक शब्द प्राचीनसँकहल जाइत रहल अछि ।हमरा नजरिमे दुर्गा सप्तशती बला उदाहरण अछि दुनूमे ।बस्स ।हम एतबे कहब जे मामलाकेँ बेसी नै घीचू ।ओहो  अहींक शिष्य छथि गजलमे ने
Unlike · Reply · 2 · March 23 at 12:45pm · Edited
Ashish Anchinhar देखियौ आब शिष्य  गुरू केर बाते नै छै। बात छै साहित्यिक चोरी केर। Deep Narayan Vidyarthi एखनो  स्वीकार नै कऽ रहल छथि जे अपन लेख लेल सामग्री अनचिन्हार आखरसँ लेला।  मानि लेबा बला बाततँ वियोगीजीYogendra Pathak Viyogi पहिने कहने छलखिन मुदा जखन Deep Narayan Vidyarthi स्वीकार नै कऽ रहल छथि तखन उपाय तँ वएह जे अंतमे वियोगी जी  आनो लोक सभ देने छथि हमराजँ दुर्गा सप्तशती बला उदाहरण अछि दुनूमे तखन ईहो फरिझौट हेबाक चाही ने जे सरल वार्णिक बहर  कहाँसँ लेलामकताक जे परिभाषा छै से कहाँसँ ?

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Jagdanand Jha हम कहब जे दिप नारायण विद्यार्थीकेँ सार्वजनिक रूपसँ एहि गप्पकेँ मानि कएएहि विवादकेँ एहिठाम विराम देल जेए ।
Jagdanand Jha विद्यार्थीजीएक लानि  लिख देने वा मानि लेने - "आभार अनचिन्हार आखरअपन मान तँ नहि घटत । गजल वा गजलक शेर सोलहो आना अपनेक अछि मुदा व्याकरणस जुरल आलेख? जखन अपने उपरमानै छी गजल सिखैमे आशीषजीक योगदान तहन हुनक सामने समर्पन किएक नहि ।
Manoj Karn मनु जीमैथिली मे आइ धरि कियो चोरि नै गछलनि.जहन गुरू चोरि करए  करबए तहन विद्यार्थी जी अपन साखजे बनबे नै केलनिकोना खराब करताह.संगे एकर प्रकाशक सेहो अपन गलती स्वीकार एहि पोथी  रचनाकार पर प्रतिबन्ध लगा अपन साख बचा सकै छथि.मुदा अखन धरिक चुप्पी सँ ओहो ऐचोरि मे समिलात बुझल जेताहमुन्ना जी
Ashish Anchinhar एखन धरि ने Deep Narayan Vidyarthi दिससँ कोनो संतोषजनक उत्तर आएल अछि  ने प्रकाशक Dilip Jha दिससँ। तकरा देखैत आब हम दोसर दिशामे जाएब।  कमेंट केर दस दिनक भीतर जँ लेखक Deep Narayan Vidyarthi संतोषजनक उत्तर नै देताह तखन हम कानूनी कारवाइ लेल स्वतंत्र रहब  एक पूरा उतरदायित्व लेखक Deep Narayan Vidyarthi केर रहतनि। संगे-संग प्रकाशक Dilip Jha केर भूमिकापर सेहो जतेक कारवाइकएल जा सकैए कएल जाएतसंगे-संग विदेहक नव अंक अबिते  चोरी प्रकरणक लिंक स्थायी भऽ जाएत  ओही लिंकक रेफरेन्स दैत साहित्य अकादेमीकेँ सेहो सूचना देल जाएत संगहि-संग आन संस्था सभकेँ सेहो सूचना देल जाएत जे Deep Narayan Vidyarthi साहित्यिक चोर छथि  हुनका कोनो कार्यक्रममे नै बजाएल जेबाक चाहीजेहन हाल पंकज पराशरकेँ भेलै निश्चित तौरपर दीपो नारायणक तेहने हाल हेतै। हम  कमेंटक माध्यमसँ दिल्लीक दूटा संस्थाक अध्यक्ष-सदस्य Sanjay Jha  संजीव सिन्हासँ आग्रह करबनि जे  अपन भविष्य सभहँक कार्यक्रममे Deep Narayan Vidyarthi केँ नै बजाबथि।..
Kavi Ekant Rajiv Jha Ehi karan Facebook par hathat kono rachna post nai karait rahait chhi
Manoj Karn स्वरचित रचना मे ' केहेन ?
Manoj Karn किए यौअहूँ दोसराक लिखल अपना नाम केलहूँ की ? हा....हा....हा....!







पंकज पराशर उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ.....
मैथिल आर मिथिला सँ पंकज पराशरकेँ निकालल जा रहल अछि।
कारण नीचाँ देल गेल अछि।
ParasharsIntellectualPropertyRightsTheft

 
ParasharsIntellectualTheft
ParasharsIntellect...
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पाठकक सूचनाक बाद ई पता चलल अछि (आ ओकर सत्यापन कएल गेल) जे एहि लेखकक ई एहि तरहक पहिल कृत्य नहि अछि। ई लेखक पहिने सेहो Douglas Kellner क Technopolitics क पंक्तिशः अनुवाद मूल लेखकक रूपमे नामसँ ज्ञानरंजनक हिन्दी पत्रिका "पहल"मे धोखासँ छपबओलक। तकर पता चललाक बाद "पहल"मे एहि लेखकक रचनाक प्रकाशन बन्द भऽ गेल। एहि सम्बन्धमे विस्तृत आलेख विदेहक अगला अंकक सम्पादकीयमे देल जाएत।
२.एहि सभ घटनाक बाद पंकज पराशरकेँ विदेहसँ बैन कएल जा रहल अछि। विदेह आर्काइवसँ "विलम्बित कइक युगमे निबद्ध" पोथीकेँ हटाओल जा रहल अछि आ एकटा इनक्वायरी द्वारा एहि पोथीक ( डगलस केलनर बला घटनाक्रमक बाद) जाँच किछु चुनल लेखक-पाठक द्वारा कएल जएबा धरि रहत। प्रकाशककेँ सेहो उचित पुलिसिया कार्यवाही (यदि आवश्यक हुअए तँ) लेल एहि समस्त घटनाक्रमक सूचना दऽ देल गेल अछि।
३.पाठक डगलस केलनरसँ ई-मेल kellner@gseis.ucla.edu पर "पहल" पत्रिका वा तकर सम्पादक श्री ज्ञानरंजनसँ editor.pahal@gmail.com, edpahaljbp@yahoo.co.in वा info@deshkaal.com पर आ दैनिक जागरणसँ nishikant@jagran.com, response@jagran.com, mailbox@jagran.com, delhi@nda.jagran.com पर सम्पर्क कए विस्तृत जानकारी लऽ सकैत छथि। डगलस केलनरक आर्टिकल गूगल सर्चपर technopolitics टाइप कए ताकि सकै छी आ पढ़ि सकै छी। पहल पत्रिकाक वेबसाइट www.deshkaal.com पर सेहो पहल पत्रिकाक पुरान अंक सभ आस्ते-आस्ते देबाक प्रारम्भ भेल अछि।

विस्तृत जानकारीक लेल सुधी पाठकगण अहाँक धन्यवाद। भविष्यमे सेहो एहि घटनाक पुनरावृत्ति नहि हुअए ताहि लेल अहाँक पारखी नजरिक आस आगाँ सेहो रहत। एहि तरहक कोनो घटनाक जानकारी हमर ई-पत्र ggajendra@gmail.com पर अवश्य पठाबी।

VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

अन्तर्जालपर ब्लैकमेलिंग विरुद्ध गूगल, चिट्ठाजगत आ ब्लोगवानीकेँ सूचित करू, साइबर क्राइम आ ब्लैकमेलिंग रोकबा लेल सेहो ढेर रास प्रावधान छै, विशेष जानकारी ggajendra@gmail.com पर सम्पर्क करू। अहाँसँ पत्रकार, न्यूजपेपर, पत्रिका आ हिन्दीक गणमान्य लेखकगण/ प्रोफेसर/ विश्वविद्यालय आदिकेँ एहि घटनासँ सूचित करेबाक अनुरोध अछि। विशेष जानकारी लेबाक आ देबाक लेल ggajendra@gmail.com पर सूचित करू।
Reply 01/26/2010 at 01:56 PM
2
VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

you may also brought this episode before sanjay@jagran.com
Thanks readers.
Reply 01/26/2010 at 12:25 AM
3
VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

But this time he has not used his name as maithil, mithila aa subodhkant but as Pankaj Parashar pparasharjnu@gmail.com
Reply 01/25/2010 at 09:48 PM
4
VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

The same blackmail letter has been sent by the blackmailer to my email address which has been spammed through ISP ISP address 220.227.163.105 , 164.100.8.3 aa 220.227.174.243 and has been forwarded for taking Police action immediately.
Reply 01/25/2010 at 09:45 PM
5
VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

Professor Kellner has thanked me for this detective work, but it all your efforts dear reader.
Reply 01/25/2010 at 08:21 PM
6
VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

pahal=- 86, aarambh -23 aa arunkamalak naye ilake me ka sambandhit prishtha pathebak lel dhanyavad pathakgan.
Reply 01/25/2010 at 08:16 PM
7
VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

http://www.gseis.ucla.edu/courses/ed253a/newDK/intell.htm ehi link par douglas kellner ke lekhak anuvad pahal-86 ke page 125-131 par achhi- soochnak lel dhanyad pathakgan.
Reply 01/24/2010 at 08:16 PM
8
VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

ehi ghatnakram me kono pathak lag je Arun Kamal jik kavita "Naye Ilake Me" hoinh aa Aarambh (ank 23, maithili magazine editor Sh. Rajmohan Jha (March 2000) me prakashist maithili kavita "Sanjh Hoit Gam Me" te kripya ggajendra@gmail.com par soochit karathi- Dhanyavad.
Reply 01/24/2010 at 08:02 PM
9
VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

ehi ghatnakram me bahut ras aar jankari aa dher ras samarthan debak lel dhanyavad pathakgan.
Reply 01/23/2010 at 11:40 PM
10
VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

विदेहक पाठकक सूचनाक बाद ई पता चलल अछि (आ ओकर सत्यापन कएल गेल) जे एहि लेखकक ई एहि तरहक पहिल कृत्य नहि अछि। ई लेखक पहिने सेहो Douglas Kellner क Technopolitics क पंक्तिशः अनुवाद मूल लेखकक रूपमे नामसँ ज्ञानरंजनक हिन्दी पत्रिका "पहल"मे धोखासँ छपबओलक। तकर पता चललाक बाद "पहल"मे एहि लेखकक रचनाक प्रकाशन बन्द भऽ गेल। एहि सम्बन्धमे विस्तृत आलेख विदेहक अगला अंकक सम्पादकीयमे देल जाएत।
२.एहि सभ घटनाक बाद पंकज पराशरकेँ विदेहसँ बैन कएल जा रहल अछि। विदेह आर्काइवसँ "विलम्बित कइक युगमे निबद्ध" पोथीकेँ हटाओल जा रहल अछि आ एकटा इनक्वायरी द्वारा एहि पोथीक ( डगलस केलनर बला घटनाक्रमक बाद) जाँच किछु चुनल लेखक-पाठक द्वारा कएल जएबा धरि रहत। प्रकाशककेँ सेहो उचित पुलिसिया कार्यवाही (यदि आवश्यक हुअए तँ) लेल एहि समस्त घटनाक्रमक सूचना दऽ देल गेल अछि।
३.पाठक डगलस केलनरसँ ई-मेल kellner@gseis.ucla.edu पर "पहल" पत्रिका वा तकर सम्पादक श्री ज्ञानरंजनसँ editor.pahal@gmail.com, edpahaljbp@yahoo.co.in वा info@deshkaal.com पर आ दैनिक जागरणसँ nishikant@jagran.com, response@jagran.com, mailbox@jagran.com, delhi@nda.jagran.com पर सम्पर्क कए विस्तृत जानकारी लऽ सकैत छथि। डगलस केलनरक आर्टिकल गूगल सर्चपर technopolitics टाइप कए ताकि सकै छी आ पढ़ि सकै छी। पहल पत्रिकाक वेबसाइट www.deshkaal.com पर सेहो पहल पत्रिकाक पुरान अंक सभ आस्ते-आस्ते देबाक प्रारम्भ भेल अछि।

विस्तृत जानकारीक लेल सुधी पाठकगण अहाँक धन्यवाद। भविष्यमे सेहो एहि घटनाक पुनरावृत्ति नहि हुअए ताहि लेल अहाँक पारखी नजरिक आस आगाँ सेहो रहत। एहि तरहक कोनो घटनाक जानकारी हमर ई-पत्र ggajendra@gmail.com पर अवश्य पठाबी।
Reply 01/22/2010 at 12:03 PM
11
VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

out of these three addresses of the spammer i.e. pkjpp@yahoo.co.in, pparasharjnu@gmail.com and pkjppster@gmail.com the address pkjpp@yahoo.co.in, is fails verification test and addresses pparasharjnu@gmail.com and pkjppster@gmail.com stands verified and confirmed.
Reply 01/21/2010 at 10:00 PM
12
VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

the htpps host matches reliance communications and the corresponding email gamghar at gmail dot com and maithilaurmithila at gmail dot com is fake ids related with the actual spammers id i.e.pkjpp@yahoo.co.in, pparasharjnu@gmail.com and pkjppster@gmail.com
Reply 01/21/2010 at 08:50 PM
13
VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

The office premise has been located, the blackmailer works in Dainik Jagran, Process to file complaint against Cyber Crime Act is being initiated and the organisation being taken into confidence.
Reply 01/21/2010 at 06:13 PM
14
VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

maithil, mithila aa subodhkant nam se abhadra aa blackmail karay bala blackmailer ke cheenhi lel gel achhi,ISP address 220.227.163.105 , 164.100.8.3 aa 220.227.174.243 aa ban kayal ja rahal achhi, agan ohi organisation se seho sampark kayal jaayat jatay se ee email aayal achhi.
Reply 01/18/2010 at 11:19 PM
15
VIDEHA GAJENDRA THAKUR said...

comment moderation lagoo kayal ja rahal achhi
Reply 01/18/2010 at 09:27 PM
16
सुबोधकांत said...



अविनाशकेँ सेहो 220.227.174.243 आइ.एस.पी.सँ एहि प्रकारक ई-पत्र अबैत रहै मुदा ओ मामिला खतम कs देने रहथिन। ओ टिप्पणी सभ एतेक घृणित छैक जे एतए नहि देल जा रहल अछि।
मैथिली साहित्य आन्दोलन

मैनेजमेन्टमे एकटा विषए छैक स्वॉट अनेलिसिस। मैथिलीक वर्तमान समस्याक लेल अपन गुरुजी चमू शास्त्रीजीक सँग कएल कैम्पक योगदानकेँ स्मरण राखैत विदेह मैथिली साहित्य आन्दोलनक कार्ययोजनाकेँ एहि कसौटीपर कसै छी।
मैथिलीक स्वॉट Strenghth- Weakness- Opportunity- Threat (SWOT) एनेलेसिस

मैथिलीक स्वॉट Strenghth- Weakness- Opportunity- Threat (SWOT) एनेलेसिस आ विदेह मैथिली साहित्य आन्दोलन

मैनेजमेन्टमे एकटा विषए छैक स्वॉट अनेलिसिस। मैथिलीक वर्तमान समस्याकेँ आ विदेह मैथिली साहित्य आन्दोलनक कार्ययोजनाकेँ एहि कसौटीपर कसै छी।

Strenghth- शक्ति, सामर्थ्य, बल –

मैथिली लेल हृदएमे अग्नि छन्हि, से सभक हृदएमे, परस्पर एक दोसराक विरोधी किएक ने होथु। जनक बीचमे एहि भाषाक आरोह, अवरोह आ भाषिक वैशिट्यकेँ लऽ कऽ आदर अछि आ एहि मे मैथिली नहि बजनिहार भाषाविद् सम्मिलित छथि। आध्यात्मिक आ सांस्कृतिक महत्वक कारण सेहो मैथिली महत्वपूर्ण अछि। एहि भाषामे एकटा आन्तरिक शक्ति छै। बहुत रास संस्था, जाहिमे किछु जातिवादी आ सांप्रदायिक संस्था सेहो सम्मिलित अछि, एकर विकास लेल तत्पर अछि। एहि भाषाक जननिहार भारत आ नेपाल दू देशमे तँ रहिते छथि आब आन-आन देश-प्रदेशमे सेहो पसरल छथि।



Weakness- न्यूनता, दुर्बलता, मूर्खता –

प्रशंसा परम्परा जाहिमे दोसराक निन्दा सेहो एहिमे सम्मिलित अछि, एकरे अन्तर्गत अबैत अछि- माने आत्मप्रशंसाक।

परस्पर प्रशंसा सेहो एहिमे शामिल अछि। सरकारपर आलम्बन, प्राथमिकताक अज्ञान- जकर कारणसँ महाकवि बनबा/ बनेबा लेल कवि समीक्षक जान अरोपने छथि- जखन भाषा मरि रहल अछि। कार्ययोजनाक स्पष्ट अभाव अछि आ जेना-तेना किछु मैथिली लेल कऽ देबा लेल सभ व्यग्र छथि, कऽ रहल छथि। स्वयं मैथिली नहि बाजि बाल-बच्चाकेँ मैथिलीसँ दूर रखबाक जेना अभियान चलल अछि आ एहिमे मीडिया, कार्टून आ शिक्षा-प्रणालीक संग एक्के खाढ़ीमे भेल अत्यधिक प्रवास अपन योगदान देलक अछि। मैथिलीक कार्यकर्ता लोकनिक कएक ध्रुवमे बँटल रहबाक कारण समर्थनपरक लॉबिइंग कर्ताक अभाव अछि। मैथिलीकेँ एहिअँ की लाभक बदला अपन/ अप्पन लोकक की लाभ एहि लेल लोक बेशी चिन्तित छथि। मैथिली छात्रक संख्याक अभाव। उत्पाद उत्तम रहला उत्तर सेहो विक्रयकौशलक आवश्यकता होइत छै। मैथिलीमे उत्तम उत्पादक अभाव तँ अछिए, विक्रयकौशलक सेहो अभाव अछि।

Opportunity- अवसर, योग, अवकाश –

विशिष्ट विषयक लेखनक अभाव, मात्र कथा-कविताक सम्बल। मैथिलीमे चित्र-शृंखला, चित्रकथा, विज्ञान, समाज विज्ञान, आध्यात्म, भौतिक, रसायन, जीव, स्वास्थ्य आदिक पोथीक अभाव अछि। ताड़ग्रन्थक संगणकक उपयोग कऽ प्रकाशन नहि भऽ रहल अछि। छात्र शक्तिक प्रयोग न्यून अछि। संध्या विद्यालय आ चित्रकला-संगीतक माध्यमसँ शिक्षा नहि देल जा रहल अछि। दूरस्थ शिक्षाक माध्यमसँ/ अन्तर्जालक माध्यमसँ मैथिलीक पढ़ाइक अत्यधिक आवश्यकता अछि। मैथिलीमे अनुवाद आ वर्तमान विषय सभपर पुस्तक लेखन आ अप्रकाशित ताड़ ग्रन्थ सभक प्रकाशनक आवश्यकता अछि। मैथिलीक माध्यमसँ प्रारम्भिक शिक्षाक आवश्यकता अछि। प्रवासी मैथिल लेल भाषा पाठन-लेखन-सम्पादन पाठ्यक्रमक आवश्यकता अछि।

Threat- भीषिका, समभाव्यविपद् –

हताशा, आत्महीनता, शिक्षासँ निष्कासन, पारम्परिक पाठशालामे शिक्षाक माध्यमक रूपमे मैथिलीक अभाव, विरल शास्त्रज्ञ, ताड़पत्रक उपेक्षा आ विदेशमे बिक्री, भाषा शैथिल्य, सांस्कृतिक प्रदूषण आ परिणामस्वरूप भाषा प्रदूषण, मुख्यधारासँ दूर भेनाइ आ मात्र दू जातिक भाषा भेनाइ, शिक्षक मध्य ज्ञान स्तरक ह्रास, राजनैतिक स्वार्थवश मैथिलीक विरोध ई सभ विपदा हमरा सभक सोझाँ अछि।

विदेहक मैथिली साहित्य आन्दोलन मैथिलीकेँ जनभाषा बनएबाक प्रक्रममे लागल अछि। पाक्षिक रूपेँ मासमे दू बेर एहिपर विचिन्ता होइत अछि। नकारात्मक चिन्तन, परदूषण आ अभाव भाषण द्वारा ई आन्दोलन नहि अवरोधित होएत आ एकरा न्यून करबाक आवश्यकता अछि। ई सभटा ऊपरवर्णित बिन्दु प्रबन्धन-विज्ञानक कार्ययोजनाक विषय अछि, आ भाषणक नहि कार्यक आवश्यकता अछि आ से हम सभ कऽ रहल छी। सम्भाषण, मैथिली माध्यमसँ पाठन, नव सर्वांगीन साहित्यक निर्माण लेल सभकेँ एकमुखी, एक स्तरीय आ एक यत्नसँ प्रयास करए पड़त। धनक अभाव तखने होइत अछि जखन सरकारी सहायतापर आस लगेने रहब। सार्वजनिक सहायताक अवलम्ब धरू, दाताक अभाव नहि स्वीकारकर्ताक अभाव अछि।


हमरा गाममे एकटा सुरजू भाइ रहथि। लोक जखन कहैत छलै जे सरकार रोड नञि बनबैत अछि तँ ओ कहै छलखिन्ह जे गाममे सभ गोटे जकर घर सड़कक कातमे छै अपन-अपन घरक आगाँक सड़क भरि देत तँ अपने सौँसे गाममे सड़क बनि जएतै। आ हुनकर खेत बाधमे दुरगरोसँ झलकैत भेटितए- गोबर-खादसँ ऊँच कऽ कऽ भरल। सुरुजु भाइकेँ भोरसँ कड़गर रौद भेला धरि पथिये-पथिये गोबर उघैत हम देखने छी। मालवीय जी झोड़ा लऽ कऽ निकलि गेल छलाह आ विश्वविद्यालय बना लेलन्हि। हमरा सभ सेहो ओही लगनसँ कार्य करी।
पंकज पराशर उर्फ.....डगलस केलनर उर्फ अरुण कमल उर्फ...
डगलस केलनरक नीचाँक आलेखकक पंकज पराशर द्वारा चोरि सिद्ध कएलक जे एक दशक पहिने एहि लेखक द्वारा अरुण कमलक चोरि सँ आइ धरि हुनकामे कोनो तरहक परिवर्तन नहि आएल छन्हि। हँ, आब ओ पटना विश्वविद्यालयक प्रोफेसरक रचना चोरेबासँ आगाँ बढ़ि गेल छथि आ कैलिफोर्निया वि.वि.क प्रोफेसरक रचना चोराबए लागल छथि। एहि सन्दर्भमे हमरा एकटा खिस्सा मोन पड़ैत अछि। २०-२२ बरख पुरान सत्य कथा। दरभंगामे रहैत रही, छतपर हम आ हमर एकटा पिसियौत भाइ साँझमे ठाढ़ रही। सोझाँमे सरवनजीक घरक बाअड़ीमे खूब लताम फड़ल छलन्हि। हमर पिसियौत भाइ हुनका इशारा दऽ कहलखिन्ह जे दस टा लताम आनू। ओ बेचारे दसटा लताम तोड़लन्हि आ आबि रहल छलाह आकि रस्तामे हमसभ देखलहुँ जे एकटा छोट बच्चा संग हुनका किछु गप भेलन्हि आ ओ पाँचटा लताम ओहि बच्चाकेँ दऽ देलखिन्ह। जखन सरवन जी अएलाह तँ कहलन्हि जे ओ बच्चा हुनका भैया कहि सम्बोधित कएलकन्हि आ पाँचटा लताम मँगलकन्हि- से कोना नञि दितियैक- सरवनजीक कहब छलन्हि। आब पंकज पराशर प्रसंगमे की भेल से देखी। प्रदीप बिहारीजीक बेटा प्रणवकेँ पंकज पराशर नोम चोम्स्की आ डगलस केलनरक रचना दैत छथिन्ह आ तकर अनुवाद करबा लेल कहै छथिन्ह। बेचारा जान लगा कऽ अनुवाद कऽ दैत छन्हि, ई सोचि जे जिनका ओ चच्चा कहै छथि- जे क्रान्तिकारी विचारक छथि (मार्क्सवादी!!!) से कोनो नीक पत्रिकामे ई अनुवाद छपबा देथिन्ह। मुदा छह मासक बाद चच्चाजी कहै छथिन्ह जे नोम चोम्स्की बला रचना हेरा गेल आ डगलस केलनर बला रचनाक अनुवाद नञि नीक रहए से रिजेक्ट भऽ गेल। मुदा क्रान्तिकारी कवि (चोरुक्का सेहो विवरण नीचाँमे अछि) दुनू रचना पहल पत्रिकामे पठा दै छथि- पहल-८६ मे डगलस केलनर बला रचना छपितो छन्हि (आ से अनुवादक रूपमे नहि वरन् मूल लेखकक रूपमे) आ ओ बैन सेहो कऽ देल जाइ छथि। हमर सरवन जी एकटा बच्चा द्वारा भैया कहलापर पाँचटा लताम ओकरा दऽ दै छथिन्ह मुदा हमर पराशरजी भातिजोक पाँचटा लताम निर्लज्जतासँ छीनि लैत छथि।
आ हम हुनकर खिजबीन तखन करै छी जखन ओ विदेहंमे आइडेन्टिटी बदलि हमरा गारि पढ़ैत छथि- हुनकर रियल आइडेन्टीटी नाङट करै छी। फेर सभसँ गप करै छी  आ पाठकक सहयोगसँ आरम्भ, पहल क पुरान अंक भेटि जाइत अछि जतए हिनकर कुकृत्य छन्हि।।

नीचाँक लिंकपर नीचाँक सभटा आर्टिकल आ कविता आ तकर पंकज पराशर द्वारा चोरिक रचनाक पी.डी.एफ. फाइल डाउनलोड लेल उपलब्ध अछि।
सूचना: पंकज पराशरकेँ डगलस केलनर आ अरुण कमलक रचनाक चोरिक पुष्टिक बाद बैन कए विदेह मैथिली साहित्य आन्दोलनसँ निकालि देल गेल अछि।
Douglas Kellner
Philosophy of Education Chair
Social Sciences and Comparative Education
University of California-Los Angeles
Box 951521, 3022B Moore Hall
Los Angeles, CA 90095-1521

Fax  310 206 6293
Phone 310 825 0977
http://www.gseis.ucla.edu/faculty/kellner/kellner.html

 

Intellectuals, the New Public Spheres, and Techno-Politics

The category of the intellectual, like everything else these days, is highly contested and up for grabs. Zygmunt Bauman contrasts intellectuals as legislators who wished to legislate universal values, usually in the service of state institutions, with intellectuals as interpreters, who merely interpret texts, public events, and other artifacts, deploying their specialized knowledge to explain or interpret things for publics (1987; 1992). He thus claims that there is a shift from modern intellectuals as legislators of universal values who legitimated the new modern social order to postmodern intellectuals as interpreters of social meanings, and thus theorizes a depoliticalization of the role of intellectuals in social life. .......

अरुण कमल
Arun lives in Patna where he teaches English at the Science College of Patna University.
नए इलाके में
जहाँ रोज बन रहे नये नये मकान
मैं अक्सर रास्ता भूल जाता हूँ
खोजता हूँ ताकता पीपल का पेड़
खोजता हूँ ढहा हुआ घर
और ज़मीन का खाली टुकड़ा जहाँ से बायें
मुड़ना था मुझे
फिर दो मकान बाद बिना रंग वाले लोहे के फाटक का
घर था इकमंजिला
चल देता हूँ
या दो घर आगे ठकमकाता
रोज कुछ घट रहा है
यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं
एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया
जैसे वसंत का गया पतझड़ को लौटा हूँ
जैसे वैशाख का गया भादो को लौटा हूँ
और पूछो -
क्या यही है वो घर?
आ चला पानी ढहा आ रहा अकास
शायद पुकार ले कोई पहचाना ऊपर से देख कर
पतचट्टा पंकज झा पराशर उर्फ पंकज पराशर  उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ..... कऽ रहल अछि भाषा भूमिक मोल

मैथिली भाषा-साहित्य के पाठक आ लेखक बंधु केँ की एहि प्रश्न सबहक उत्तर अवश्य जानबाक चाही।पतचट्टा पंकज झा पराशर उर्फ पंकज पराशर  उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ..... नामक एहि व्यक्तिक बहुत रास कच्चा चिट्ठा –जेना एम.ए.मे प्रथम श्रेणीमे सर्वोच्च स्थान?? पत्रकारिताक कोर्स?? ई  सभ नटबरलालक तर्जपर!! जे.एन.यू.क लड़कीसँ हिन्दी अनुवाद कराएब जे एहिसँ पतचट्टा पंकज झा पराशर उर्फ पंकज पराशर  उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ.....केँ नोकरी भेटि जएतैक आ फेर तकरा अपना नामसँ छपबा लेब, प्रणवसँ डगलस केलनरक आ नोम चोम्स्कीक अनुवाद करबाएब आ अपना नामसँ छपबा लेब, अरुण कमल, श्रीकान्त वर्मा, इलारानी सिंह। ई पतचट्टा पंकज झा पराशर उर्फ पंकज पराशर  उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ..... सभ लेखक सभसँ हुनकर परिवारजनसँ कहै छन्हि जे अनुवाद लेल कथा-कविता दिअ आ फेर तकरा चोरा कऽ अपना नामसँ छपबा लैत अछि। हिन्दीमे बैन भेलाक बाद मैथिलीक सेवा! गौरीनाथकेँ पहिने गारि पढ़ै छन्हि आ फेर लिखित माफी मँगै अछि। क्लेप्टोमेनियासँ ग्रसित पतचट्टा पंकज झा पराशर उर्फ पंकज पराशर  उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ..... क ई हाल छै जे रमण कुमार सिंहकेँ ओकरापर कविता लिखै पड़ै छन्हि ..ककरासँ की चोरेने छी जे अनिद्रा पैसि गेल? अविनाश केँ गारि  , श्रीधरम आ अनलकान्त केँ गारि , रामदेव झा केँ गारि , राजमोहन झा आ राजनन्दन लाल दास केँ गारि , सुभाषचन्द्रयादव-केदार कानन- तारानन्द झा तरुण- प्रोफेसर महेन्द्र- रमेश सभकेँ गारि- मैथिली सर्जनामे रामदेव झाकेँ गारि पढ़ैत सहरसा चिट्ठी आ सहरसा सभक साहित्यकारकेँ गारि पढ़ैत रामदेव झाकेँ चिट्ठी, ई दुनू चिट्ठी संगे छपल!! चोरक सीना जोड़बाक एहिसँ नीक उदाहरण भेटब मोश्किल।यएह छी   पतचट्टा पंकज झा पराशर उर्फ पंकज पराशर  उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ.....क यथार्थ। #  आख़िरी सफ़र पर निकलने तक / पतचट्टा पंकज झा पराशर उर्फ पंकज पराशर  उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ..... # पुरस्कारोत्सुकी आत्माएँ / पतचट्टा पंकज झा पराशर उर्फ पंकज पराशर  उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ..... # बऊ बाज़ार / पतचट्टा पंकज झा पराशर उर्फ पंकज पराशर  उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ.....
# मरण जल / पतचट्टा पंकज झा पराशर उर्फ पंकज पराशर  उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ..... # रात्रि से रात्रि तक / पतचट्टा पंकज झा पराशर उर्फ पंकज पराशर  उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ..... # साला सब हँसकर निकल जाता है अपुन को अकेला चीख़ता छोड़कर / पतचट्टा पंकज झा पराशर उर्फ पंकज पराशर  उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ..... # हस्त चिन्ह / पतचट्टा पंकज झा पराशर उर्फ पंकज पराशर  उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ.....

नयनसुख इंसाफी मरड़ उर्फ ब्लैकमेलर पंकज पराशर उर्फ पतचट्टा उर्फ अरुण कमल उर्फ श्वान रूप संसार है भूंकन दे झख मार उर्फ कुफ्र कुछ चाहिए ...की रौनक के लिए उर्फ गोयबल्स उर्फ कारेल चापेक उर्फ अपन कारी मुँह उर्फ मोहल्ला लाइव उर्फ पतनुकान उर्फ उदय प्रकाश उर्फ पहल उर्फ रवि भूषण उर्फ निराला उर्फ वर्चुअल स्पेस। 
Mr Pankaj Parashar alias Pankaj Jha Parashar alias Douglas Kellner alias Arun Kamal alias Sreekant Verma alias Ilarani Singh alias Udayakant alias ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 alias.....the new Natwar lal of Maithili literature got  a book translated Hindi by a JNU girl colleague and got it published in his own name, he got translated Noam Chomsky’s article and Douglas Kellner’s article translated into Hindi by a young boy and got it published in Hindi Magazine PAHAL-86 in his own name and was banned!! His bio-data has many exotic and false things First class First in M.A. !!! Gold Medalist!!! journalism etc. the person is kleptomaniac and a literary cheat and has copied articles, poems of Douglas Kellner , Arun Kamal , Sreekant Verma , Ilarani Singh
 
पंकज पराशर उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ.....
१.डॉ. जेकील आ मिस्टर हाइडक कथा अंग्रेजी विषएमे स्कूलमे पढ़ने रही। एकटा वैज्ञानिक रहथि डॉ. जेकील हृदएसँ कलुषित। मोन करन्हि जे चोरि-उच्क्कागिरी करी। से एकटा द्रवक खोज कएलन्हि जकरा पीबि कऽ ओ मिस्टर हाइड बनि जाथि आ रातिमे चोरि-उच्क्कागिरी करथि। एक रातुक गप अछि जे मिस्टर हाइड ककरो हत्या कऽ भागि रहल रहथि मुदा भोर भऽ गेल रहै से लोक सभ हुनका खेहारए लगलन्हि। ओ डॉ.जेकीलक घरमे पैसि गेलाह (कारण डॉ.जेकील तँ ओ स्वयं छलाह) आ केबार भीतरसँ लगा लेलन्हि। लोक सभ चिन्तित जे डॉ. जेकीलकेँ ई बदमाश मारि देतन्हि से ओ सभ केबार पीटए लगलाह। मिस्टर हाइड द्रव पीअब शुरु केलन्हि मुदा ओहि दिन दवाइमे रिएक्शन नहि भेलैक आ हुनकर रूप डॉ. जेकीलमे नहि बदलि सकलन्हि। आब एहि कथाक अन्तमे मिस्टर हाइड माथ नोचि रहल छथि जे हुनका अपन समस्त पापक प्रायश्चित मिस्टर हाइड बनि करए पड़तन्हि।
२. पंकज पराशर उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ..... हिनकर रियल आइडेन्टिटी हम नाङट करै छी आ ई आब अभिशप्त छथि अपन शेष जीवन मिस्टर हाइड रहि अपन कुकृत्यक सजा भुगतबाक लेल।
३.मैथिलमे ई एकटा तथ्य छै जे चुपचाप जे गारि सुनै अछि तकरा कहल जाइ छै जे ओ बड्ड नीक लोक छथि। मुदा समए आबि गेल अछि मिस्टर हाइड सभकेँ देखार करबाक आ ओकरा कठोर सजा देबाक। मुदा ई तँ मात्र प्रारम्भ अछि। मैथिलीमे बहुत गोटे छथि जे हिन्दीमे बैन भेल लेखककेँ पोसै छथि (मैथिली सेवाक लेल) जे जखन ककरो गारि पढ़बाक होए तँ ओ तकर प्रयोग कऽ सकथि।
४.एहि ब्लैकमेलरक डॉ. जेकील आ मिस्टर हाइड बला चरित्र मैथिल सर्जनाक विरोधमे मैथिल-जन पत्रिकामे एक दशक पहिने उजागर भऽ गेल छल मुदा लोक हिनका पोसैत रहल।
५.आरम्भमे सेहो ई एकटा चिट्ठी मैथिलीक सम्पादकक विरोधमे देलन्हि जे छपि गेल आ ओकर घृणित भाषाक कारण भाइ साहेब राजमोहन झाकेँ माफी माँगए पड़लन्हि आ फेर ई मिस्टर हाइड सेहो ओहि सम्पादकसँ लिखितमे माफी मँगलन्हि।
६.एकटा आग्रह आ आह्वान: सुभेश कर्ण आ समस्त मैथिली-प्रेमी-गण- एहि मिस्टर हाइडक ब्लैकमेलिंग आ एब्युजक द्वारे अहाँ सभकेँ मैथिली छोड़ि कऽ जएबाक आवश्यकता नहि अछि, कारण पापक घैला भरि गेलाक बाद ई आब अभिशप्त छथि अपन शेष जीवन मिस्टर हाइड रहि अपन कुकृत्यक सजा भुगतबाक लेल।
जे.एन.यू.मे छात्र-छात्रा सभसँ पोस्टकार्ड पर साइन लऽ ओहिपर अपन रचना लेल प्रशंसा-पत्र पठबैत घुमैत अपस्याँत कथित गोल्ड मेडेलिस्ट(!!!) मिस्टर हाइडकेँ चिड़ैक खोता तोड़बाक सख शुरुहेसँ छन्हि। पहिल कथा गोष्ठीमे जखन ई सहरसामे सभसँ पुछने फिरै छथि जे साहित्यकार बनबासँ की-की सभ फाएदा छै तखन ई एकटा पाइ आ पुरस्कारक लेल अपस्याँत मैथिल युवा-पीढ़ीक प्रतिनिधित्व करै छथि, जे राजमोहन झा जीक शब्दमे मैथिलीसँ प्रेम नञि करैत अछि। ई मिस्टर हाइड सेहो ओहि सम्पादकसँ लिखितमे माफी मँगलन्हि आ जखन ओ माफ कऽ देलखिन्ह तखन फेर हुनका गारि पढ़ब शुरु कऽ देलन्हि। हमरासँ लिखित मेल-माफी अस्वीकार भेलाक बाद मिस्टर हाइडक माथ नोचब स्वाभाविके। मिस्टर हाइड ककरो इनकम टैक्स, कस्टम वा सरकारी नोकरीमे देखै छथि, सुनै छथि तँ पाइक मारल जेकाँ हिनका मोनमे ब्लैकमेलिंग कुलुबुलाए लगै छन्हि, प्रायः आनन्द फिल्म एक गोट कलाकार जेकाँ- जे एहने मिस्टर हाइड लेल कहै अछि- जे ई डॉक्टर रहितए तँ किडनी बेचितए, से ओ जतए छथि ओतहु ब्लैकमेलिंगक धन्धा शुरू कैये देने छथि। मुदा चिड़ैक खोता उजाड़ैत-उजाड़ैत मधुमाखीक छत्ता उजाड़बाक गल्ती एहेन ब्लैकमेलर कैये दैत अछि। जे सरकारी नोकरी वा इन्कम-टैक्स, कस्टममे ई ब्लैकमेलर रहितए तँ देश जरूर बेचि दैतए।
kellner@ucla.edu"
Dear Gajendra
thanks for the detective work. was there a response?
best regards,
Douglas Kellner
Philosophy of Education Chair
Social Sciences and Comparative Education
University of California-Los Angeles
Box 951521, 3022B Moore Hall
Los Angeles, CA 90095-1521

Fax  310 206 6293
Phone 310 825 0977
http://www.gseis.ucla.edu/faculty/kellner/kellner.html


dear Gajendraji,
apnek mail milal. Pankajjik kritya janike bar dukh bhel. Ahi se maithilik nam kharab hoyat achhi. Apnek kadam ekdum uchit achhi.
Rajiv K Verma
These People are hellbent to bring down the literary discourse down to the gutter. Now you have been receiving mails like one. We are with you and i have forwarded your mails to Maithili speaking people all across the country  

--
VIJAY DEO JHA
dhanyvad. muda ehne lok sabjagah aadar pabait achi
shridharam

अहां कें सूचनार्थ पठेने छी जे पंकज पहिनेहो इ सब काज करैत रहय छलैए।
aavinash

Dear Gajendra g

You are doing very well in the field of collecting all the documents related to the Maithili. Videha. Com realy a adventureous collection. I will also find some time to learm the article published through the videha.
Now your detective style theft the sleeping of many of the so called literary personnel. Go a head
jai Maithili jai Mithila
Sunil Mallick
President
MINAP, Janakpur

Dear Gajendra g

You are doing very well in the field of collecting all the documents related to the Maithili. Videha. Com realy a adventureous collection. I will also find some time to learm the article published through the videha.
Now your detective style theft the sleeping of many of the so called literary personnel. Go a head
jai Maithili jai Mithila

Sunil Mallick
President
MINAP, Janakpur

your efforts are commendable. Anysuch ghost writer or fake identity holder must be boycotted from literature at once Thanks.

shyamanand choudhary

Namaskar.
Chetna samitik sachiv ken mailak copy hastgat kara del achi.
Dr. Ramanand Jha' Raman'
गजेन्द्र जी ,
चेतना समिति हिनका सम्मानित कएलक अछि सेहो हमरा ज्ञात नहिं | यद्यपि हमहू चेतना क  स्थाई सदस्य | जे हो. मुदा निंदास्पद घटना तं ई थिके तें दुखी कयलक |  कतिपय नव मैथिल-प्रतिभाक आकलन-मूल्यानकनक हमर अपन स्नेग्रही स्वभाव, एहि दुर्घटनाक बाद तं आब  चिंता मे ध' देलकय|   
देखी,
सस्नेह ---गं गुंजन    
प्रिय गजेंद्रजी
हम अपने विस्मित भेलहुँ| बहुत दु:खद दृश्य | सृजन विरूद्ध साहित्यिक सन्दर्भ मे ई घटना आधुनिक मैथिलीक बहुत कुरूप प्रसंग क' क'  स्मरण कैल जायत
सस्नेह,
गंगेश गुंजन.
PRIYA MAITHILJAN
APPAN BHASHA- SANSKAR-SANSKRITI KE ASMARAN KARU AA EHAN VIVADAASAPAD LEKANI B KARANI KE VIRAM DIYA. ESWAR KE SAKCHI MANI - DIL PAR HATH RAKHI AA KULDEVI KE ASMARAN K-K YAD KARU KI SACHHAI KE KATEK KARIB CHHI.NIK BATAK LEL MANCH KE UPYOG KARI TA UTTAM.
DHANYABAD.
SAPREM,PK CHOUDHARY
Gajendra babu
pankaj puran chor achhi. Ham sab okar likhit ninda das sal pahine aarambh me kene rahi. Okra ban k kay ahan nik kayal. Chetna samiti ke seho samman wapas lebak chahi aa okar ninda karbak chahi.
subhash Chandra yadav
प्रिय ठाकुरजी!
(माननीय संपादक)
“विदेह ई-पत्रिका” [मैथिली]
एखन धरिक उपलब्ध साक्ष्यक आधार पर हम अपनहिक संग जाएब पसिन्न करब।
शंभु कुमार सिंह
Sir I have sent the link of Parashar's duplicacy to several people
along with Pranabh Bihari who had traslated that article. I had
telephonic conversation with him also and he was quite upset over
Parashar;s duplicay
Pranav is my junior and a good friend of mine. since you have referred Pranav who had traslated that article it is unfortunate that he was misused by Parashar. But i must congratulate you for exposing scam run by Parashar and his team. Parashar, though must not be blamed if he lifted the article of Nom Chomskey . Now i must doubt the artistic sensibility of Parashar who is now a pseudo-- intellectuals. I am amazed that how did he dare to publish the article of Nom Chomskey as his own.
God bless him no more       
Vijay Deo Jha
Dear Gajendraji,
I fully agree with you that we must fight against blatant cases of wrongful appropriation.
हां अपन मेल में लिखने छी जे विदेह आर्काइव से संबंधित लेखक'क सबटा रचना हटा लेल जायत। अहि से आर्काइव सं ई प्रसंग सेहो, एकर साक्ष्य  सेहो मेटा जायत। हमर मत ई जा साक्ष्यब रहबाक चाही निक आ अधलाह दुनु तरहक काज'क। अहां अप्पसन कामेंट आ र्निणय सेहो आर्काइव मे जा के संबंधित रचना के पोस्टा-स्क्रिाप्टर के रुप मे भविष्या'क पाठक'क लेल सुरक्षित राखि सकैत छियन्हिि।
ई दोहरेबाक बहुत औचित्यक नहि जे विदेह निक लागि रहल अछि आ अहांक परिश्रम एकदम देखा रहल अछि।
ईति,
सदन।


Sadan Jha
Sadan Jha

Thank you and same to you.

Nishikant Thakur

Thanx Gajendraji, for your immediate response. I must congratulate you for the work you have done to save the sanctity of the literature world as a whole.

I feel proud for the person like you who shows the courrage to bell the cat. If the so called writers like Parasharji are there to spoil the sea, on the other side it is very hopeful sight to have a person like you who is alert enough to take care of such filth & keep the sea clean.

Thanx for enlightening me on the subject.

Regards,
Bhalchandra Jha.

पंकज पराशरकेर एहन कार्य पर स्मरण अबैत अछि करीब बीस-पचीस साल पहिलुक घटना, जहिया आकाशवाणी दरभंगासँ म,म,डॉ, सर गंगानाथ झाक एकमात्र मैथिलीक कारुणिक पदकेँ एक गोट कवि द्वारा अपन कहि प्रसारित कए देल गेल छल, जे बादमे (सजग श्रोता द्वारा सूचना देलाक बाद) आजन्म बैन कए देल गेलाह । कहबाक तात्पर्य जे जँ हम मैथिल दरभैगा- मधुबनीमे गंगानाथ बाबूक पदकेँ अपन कहि सकैत छी तँ ई कोन बड़का गप । निश्चये एहन रचनाकारकेर सङ्ग कड़गर डेग उठाएब आवश्यक ।
ajit mishra

Dear Gajendrajee,
We should take strong step to prevent such intellectual cheats.
My support is always with you.
K N Jha
This seems to be a dangerous trend and we should also try and refrain from publishing anything from such authors. Regards,
Prof. Udaya Narayana Singh
प्रियवर ठाकुर जी,
मैथिल साहित्यकार आब साइबर क्राइम सेहो क रहल छथि, ई जानि अपार प्रसन्नता भेल |
पंकज पराशर  के नकारात्मक बुद्धिक पूर्ण उपयोग करबाक लेल हम नोबेल प्राइज सा सम्मानित कराय चाहैत छी |
बुद्धिनाथ मिश्र
Sampadak Mahoday
Apne ehi prakarak durachar rokwak lel je prayash ka rahal chhee
ohi lel dhanyabad.Ehen blackmailer sa maithili ken bachayab aawashyak
achhi
Sadar
SHIV KUMAR JHA


गजेन्द्र भाई,
नमस्कार ! मैथिली मे एहि तरहक काज लगातार भ' रहल अछि । किछु व्यक्ति एहि धंधा मे अग्रसर छथि । मैथिलीक सम्पादक लोकनिक अनभिज्ञताक फायदा कतेको अंग्रेजी पढ़निहार तथाकथित साहित्यकार लोकनि उठा रहल छथि । पंकज जीक पहल मे छपल लेख के हम सेहो पढ़्ने र्ही आ किछुए दिनक बाद हम नेट पर मूल लेखकक आलेख के सेहो पढ़लहु । हमरा त' आश्चर्य लागल छल जे पंकज जी आलेखक कम स कम शीर्षक त' बदलि लैतथि मुदा हुनका एतेक ज्ञान रहितनि तखन की छल । 

एतबे नहि , हिनक बहुत रास कवितो अंग्रेजी साहित्य स' हेर-फेर कयल गेल अछि । खैर ! जे करथि ... । मुदा एहि बेर कहाबत ठीक होबाक चाही " सौ सोनार के त' एक लोहार के " । प्रकाशन मे जे भी कियो व्यक्ति गलती क' रहल छथि हुनका गंभीर क्रिमिनल बुझबाक चाही ।

धन्यवाद एहि लेल अहाँ के जे एतेक जोरदार तरीका स' एहि गप्प के उठैलहु ।

अहाँक

प्रकाश चन्द्र ।
pankaj parashar vala prasang bar dukhad laagal ,,
kamini
Gajendr jee,
maamailaa ke tool jatabe debainhi, sabhak oorjaa otabe svaahaa hetai. हमर मनतब एतबे, जे एक बेर अहां देखार क देलहुं, आब छोडि देल जाओ. हिन्दीयो मे एहिना भ रहल छै. बेर बेर आ खराब भाषा मे लिखल मोन के दुखी करैत अछि. फेर लागैत अछि जे अहि मे समय कियैक नष्ट करी?
हिन्दुस्तान मे जाति आ सेहो मैथिली से जाति नयि जाएत. हम एकरा नयि मानैत छलहुं मुदा आब 30 बरख से मैथिली मे लिखनाक बाद आब देखल जे एक ओर
1 मैथिली साहित्य मे लिली जी, उषा जी आ शेफलिका जी के बाद यदि किओ नाम लैत अछि त हमर.
2 एखनो कोनो पत्रिका बै छै त हमरा लेल रचनाक आग्रह होइते छै.
3 एखनो हम ओतबे सक्रिय छी आ निरंतर लिखि रहल छी.
4 दुखद जे हमरा बाद (सुस्मिता पाठक आ ज्योत्स्ना मिलन के हम अपने तुरिया बुझैत छी) के बाद एहेन कोनो सशक्त कोन, महिला लेखने नयि आएलए.
5 ई स्थिति रहलाक बादो, आब जहन हम देखै छी, त पाबै छी जे हमरा पर, हमर रचना यात्रा अथव हमर रचना पर किछु नयि लिखल गेलए, चाहे ओ मोहन भारद्वाज रहथु अथवा आन किओ. जहन हमर दशक केर चर्च होइत छै, तीन चारिटा नाम पर सविस्तार चर्चा होइत छै, जाहि मे हमर नाम नयि रहैत छै. हमर नाम मात्र सन्दर्भ लेल जोडि देल जाइत छै.
6 एतेक दिन मे मात्र रमण जी हमरा पर एक गोट लेख लिखलन्हि. हम ओकरा पुन: टाइप करबा के अहां लग पठायब.
7 जाति पाति धर्म आ द्वेष पर कहियो ध्यान नयि देलाक कारणे त कही हमर ई स्थिति नयि छै, आब हमरा ई सोचबा मे आबि रहल अछि.
8 हमर शिक्षक, जे स्वयं हिन्दी के ख्यातिलब्ध कथाकार छथि, हमरा बुझेने रहलाह जे हम मैथिली मे लिखब बन्न क; दी, कियैक त हम गैर मैथिल (जाति विशेष) से नयि छी, तैं हमर लेखन के कहियो मैथिल सभ नयि नोटिस करताह, कहियो किछु नयि करता.. अपन भाषाक प्रति प्रेम के आगरह कारणे हम हुनकर बात नयि मानलियै, लिखैत गेलहुं, मुदा आब लागि रहलअए जे हुनकर कहबी सही छलन्हि की?
9 एखनो की हाल छै मैथिली मे, देखियो. ओकरा विरुद्ध किछु करियु. मैथिली मे जे पैघ पैघ संस्था चाइ, चेतना समिति सनक, सभ बेर विद्यापति पर्व मनबैत छथि. लाखो खर्च करै छथि, मुदा नीक लेखक केर पोथी सभ बेर 5-7 टा निकालैथु, से नयि होबैत छन्हि.
10 हमरा भेटल जानकारी के मोताबिक विद्यापति हॉल किराया पर चढै छै. तकरा मे कोनो आपत्ति नयि, यदो ओकरा से किछु आय होबै. मुदा ओकरा मैथिलीक काज अथवा नाटक आदि लेल मांगल जाएत, त; नयि भेटै छै. यदि ओकर शुल्क चुका दी, तहन त किरायाके रूप मे किऊ ल' सकि छै. एकरा सभ के उजागर करी.
11 व्यक्ति से संस्था पैघ होइत छै. जतेक संस्था सभ छै, तकरा पर लिखी, साहित्य अकादमीक मैथिली विभाग सहित.
12 लिली रेक सभटा रचनाक अनुवाद अधिकार हमरा देने छथि. हुनक साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त पोथी 'मरीचिका' केर हिन्दी अनुवाद लेल पिछला 2-3 साल से हम लिखि रहल छी.  साहित्य अकादमीक पत्रिका 'समकालीन भारतीय साहित्य" मे हम पिछला 25 साल से अनुवाद सहित छपि रहल छी. मुदा हमरा से अनुवादक नमूना मांगल गेल. ओहि कुर्सी पर जे स्वनाम धन्य बैसल छथि, हुनका हमरा मादे नयि बूझल त कोनो मैथिल साहित्यकार से पूछि सकैत छलाह. ई तहिने भेलै, जेना एक बेर एक गोट चैनल ऋषिकेश मुखर्जी से हुनकर बायोडाटा मंगने छल आ एखनि पढल समाचारक अनुसारे आ. जानकी वल्लभ श्हस्त्री से हुनकर बायोडाटा पद्मश्री लेल मांअगल गेलैय.
13 अपन विनम्रता दर्शाबैत हम लिली जीक दू तीन टा कथाक हिन्दी अनुवाद हम पठा देलियन्हि. तैयो अई पर कोनो विचार नयि. लिखला के बाद हमरा कहल गेल जे हम लिली जी से साहित्य अकादमी के अनुवादक अधिकार दियाबे मे मददि करी. आरे भाई, अहां के अनुवाद से मतलब अछि ने, आ जहन हम अनुवाद क; के देब' लेल तैयार छी तहन अकादमी के किअयैक अधिकार चाही? अई लेल जे अकादमी अपन पसीनक आदमी के अनुवाद लेल द; सकय. एखनि धरि ओकरा पर निपटारा नयि भेलैये. अकादमी से फेर कोनो पत्र नयि आएल अछे. अनुवाद तैयार राखल छै. लिली जी आब बहुत बुजुर्ग भ; गेल छथि. हुनक मात्र इयैह इच्छा छै (आ बहुत स्वाभाविक) जे हुनकर पोथी सभ हुनका सोझा मे प्रकाशित भ; जाए.
14 लिली जी के पोथी हिन्दी मे आनबाक श्रेय हमरे अछि, ई मनितहुं ओकरा रेकॉर्ड केनाए मैथिल समीक्षक आवश्यक नयि बुझैत छथि. एकरा पर लडू.
15 मैथिली के भारतीय ज्ञानपीठ से पुस्तक प्रकाशन लेल हमही आगां एलहुं आ प्रभास जी आ लिली जी के पोथी बहार भेलै.भारतीय ज्ञानपीठ से मैथिली  पुस्तक प्रकाशन के श्रेय हमरे छन्हि, ईहो मनैत ओकरा रेकॉर्ड केनाए मैथिल समीक्षक आवश्यक नयि बुझैत छथि. एकरा पर लडू.
गजेन्द्र जी, मैथिलीक ई सभ मानसिकता पर आन्दोलन करी जाहि से रचनाकार आ वरिष्ठ रचनाकार सभ के अपमानित नयि होब' पडै. अहां चाही त' एकरा विदेह पर द' सकै छी.
हम दोसर बात सेहो लिखि के पठायब. मुदा हम फेर कहब, जे हम व्यक्ति के नयि संस्था आ व्यक्ति के मानसिकता के दोष देबन्हि. लोक पढथु आ पूचाथु ई स्वनामधन्य सभ से जे जकरा से अहां के गोलौंसी अछे, तकरा पर अहां लिखब आ जकरा से नयि अछे, जे मौन भावे लिखि रहलए कोनो विविआद मे पडल बगैर, हुनका लेल ई व्यवहार?
-विभा रानी.
Shri gajendraji

good work.

Anha sa ehina neer khshir vivekakak ummeed lagatar banal rahat.

chor ke ehina dekhar kelak baad dandit seho karbak prayas karbaak chahi. anha bahut raas neek pahal ka rahal chhi.


Saadhuvaad.

manoj pathak.


-->

We should be greatful to Pankaj Parashar that he did not lay claim on the magnum opus of Kavi Vidyapati. I know him very well and his group as well. They have no love for Maithili in fact they are the moles planted by vested Hindi writers to damage maithili.
Parashar and likes are the distructive lots and they are the culprits for agonising senior writers of Maithili those who dedicated their life for Maithili language and literature. I have no sympathy for him. I cant say, even, God bless them.-
Chitra Mishra  पंकज पराशरक पहिल मैथिली पद्य संग्रह समयकेँ अकानैत मैथिली पद्यक भविष्यक प्रति आश्वस्ति दैत मुदा एकर कविता सभ श्रीकान्त वर्माक मगधक अनुकृति होएबाक कारण आ रमेशक प्रति आक्षेपक कारण, ( पहिनहियो अरुण कमल आ बादमे डगलस केलनर, नोम चोम्स्की, इलारानी सिंह, श्रीकान्त वर्मा, राजकमल चौधरी आ प्राच्य आ पाश्चात्य रचनाक / कविता सभक निर्ल्ज्जतासँ पंकज पराशर द्वारा चोरिक कारण) मैथिली कविताक इतिहासमे एकटा कलंक लगा जाइत अछि।
 ई पंकज झा पराशर पहिनहियेसँ एहि सभमे संलग्न अछि, हरेकृष्ण झाक कविताकेँ हिन्दीमे, बिना अनुमतिक, छपबै छथि ,डॉक्टर हुनका तनावसँ दूर रहबा लेल कहने छन्हि। ई गप आर पुष्ट होइत अचि कारण विद्यानन्द झा जीक कविता सेहो ई पंकज झा पराशर एकटा हिन्दी पत्रिकामे बिना अनुमतिक छपबओलक, माने ई आदत हिनकर पुरान छन्हि। सम्पादक)


 

Recently Some Maithil Brahmin Samaj Organisation has started selling prizes in the name of Yatri (Vaidyanath Mishra, Nagarjun) and Kiran (Kanchinath Jha) .
There has been trend recently to grant these prizes to those intellectual thiefs who are basically opposed to the ideology's of Kiran and Yatri (Nagarjun).
The caste based organisations are killing the spirit of Yatriji and Kiranji, recently the fraud Pankaj Jha alias Pankaj Kumar Jha alias Pankaj Parashar alias Dr. Pankaj Parashar) was
stage managed to get this casteist award, The lecturer of Hindi at Aligarh Muslim University, just appointed as adhoc staff, will teach now how to lift verbatim articles of Noam Chomsky and Douglas Kellner and poems of Illarani Singh and Arun Kamal to his students. His Samay ke akanait (समय केँ अकानैत) is lifted from Magadh of Srikant Verma (श्रीकान्त वर्मा- मगध) and his Vilambit Kaik Yug me Nibaddha (विलम्बित कइक युग मे निबद्ध) is collection of pirated poems of Illarani Singh Srikant Verma and others.ई संग्रह इलारानी सिंह, श्रीकान्त वर्मा, गजेन्द्र ठाकुर, राजकमल चौधरी आदि कविक पंकज पराशर द्वारा चोराएल रचनाक कारण बैन कए देल गेल। "रचना"पत्रिकाक कथित अतिथि सम्पादकक रूपमे पंकज पराशर द्वारा कवि-कहानीकार सभसँ रचना सेहो मँगबाओल गेल आ तकरा अपना नामसँ छपबाओल गेल। ई छद्म साहित्यकार पराशर गोत्रक (!!)पंकज  कुमार झा उर्फ पंकज पराशर बहुतो लेखकक अप्रकाशित रचना अनुवाद करबा लेल सेहो लेलक आ अपना नामेँ छपबा लेलक। पाठकक आग्रहपर आर्काइवमे ई तथ्य राखल जा रहल अछि।- सम्पादक
We deplore the selling of these prizes to a person who has brought respect of Maithili to a lower level.

तारानन्द वियोगी: (मिथिला सृजन: जून-जुलाई २०१०, वर्ष-१, अंक-२): हुनक (पंकज पराशरक) अनेक रचना एहनो छनि जकर जन्म दोसरक काव्य रचना पढ़लाक अनन्तर भेलनि अछि। कविता ओ परिपूर्णतः हुनके थिकनि मुदा किछु गोटेकेँ ई कहबाक अवसर भेटि गेलनि जे ओ पंकज चोर-कवि थिकाह। हम देखैत छी जे चोर समीक्षक भने ओ होथु, चोर-कवि ओ कदापि नहि छथि। मुदा एना किएक भेल? एहि दुआरे भेल जे आनक रचना पढ़ि कऽ अपन अनुभूतिमे उतरैत काल ओ आनक आभामंडलसँ तेना आक्रान्त छलाह जे तकर छाप कविताक दृश्यमे देखार पड़ि गेल। ई वस्तुतः सिद्धताक कमी थिक, जकरा क्यो रचनाकार रचिते-रचिते सिद्ध कऽ सकैत अछि।

गौरीनाथ (अनलकान्त))- सम्पादकीय अंतिका अक्टूबर-दिसंबर, 2009- जनवरी-मार्च, 2010- पंकज पराशर प्रसंगमे- हँ, दंद-फंद करैवला किछु लोक सब ठाम पहुँचि जाइ छै आ तेहन लोक एतहुँ अपन धूर्तता आ चोरि कला देखबै छथि। मुदा तकरो असलियत उजागर करब असंभव नइँ रहल। "विदेह"क गजेन्द्र ठाकुर एहन एक "युवा" (पंकज झा उर्फ पंकज पराशर) क असली चेहरा हाले मे देखोलनि।

रमेश
बहस-
पंकज पराशरक साहित्यिक चोरि मैथिली साहित्यक कारी अध्याय थिक
विदेह-सदेह २ (२००९-१०) सँ पंकज पराशरक साहित्यिक चोरि आ साइबर अपराधक पापक घैलक महा-विस्फोट भेल अछि। ई पैघ श्रेय पत्रिकाक सम्पादक श्री गजेन्द्र ठाकुरकेँ जाइत छनि। हुनकर अपराध पकड़बाक चेतना केर जतेक प्रशंसा कयल जाय, कम होयत। विदेहक मैथिली प्रबन्ध-समालोचना- अंक, अइ पोल-खोल लेल कएक युग धरि विलम्बित भऽ कऽ निबद्ध रहत, से समय केँ अकानैत कहब कठिन अछि।
साहित्योमे चौर्यकलाक उदाहरण पहिनहुँ अबैत रहल अछि गोटपगरा। मुदा एक बेरक चोरि पकड़ा गेलाक बाद प्रायः चोरिक आरोपी साहित्यकार मौन-व्रत धारण करैत रहलाह अछि आ मामिला ठंढ़ाइत रहल अछि।
मुदा ताहि परम्पराक विपरीत अइ बेरक चोर ’सिन्हा चोर’ निकलल अछि आ विगत एक दशकसँ निरन्तर चोरि करैत जा रहल अछि- सेन्ह काटिकऽ। आ तेहेन महाचोरकेँ मैथिलीक साहित्यकार आ संस्था सभ तरहत्थीपर उठा-उठा कऽ पुरस्कृत केलक अछि आ समीक्षाक चासनीमे चोरायल कविता सबकेँ बोरि देल गेल अछि।
विदेह-सदेह-२ प्रमाण-पुरस्सर अभियोगे टा नहि लगौलक, अपितु एहेन महत्वाकांक्षी असामाजिक तत्वक विरुद्ध साहित्यिक दण्ड आरोपित कऽ अपन बोल्डनेस सेहो प्रदर्शित केलक अछि। एक दशकमे तीन बेर पकड़ायल चोर प्रायः डेयर डेभिल होइत अछि आ अपन अनुचित। सीमाहीन महत्वाकांक्षाक पूर्ति लेल अपन वरीय संवर्गीय व्यक्तिकेँ सीढ़ीक रूपमे उपयोग करैत अछि आ स्वार्थ-सिद्धिक उपरान्त अपन पयर सँ ओही सीढ़ीकेँ निचाँ खसा दैत अछि। फेर ओकरा अपन ट्विटर-फेसबुक-नेट वा पत्रिकामे गारिक निकृष्टतम स्तरपर उतरऽ मे कनियों देरी नहि होइत छै। ओ नाम बदलि-बदलि कऽ गारि पढ़ैत अछि आ अपन प्रशंसामे जे.एन.यू.क छात्र-छात्राक पोस्टकार्ड लिखेबामे अपस्याँत भऽ जाइत अछि। ओ हिन्दीक कोनो बड़का साहित्यकारक बेटीक संग अपन नाम जोड़ि विवाहक वा प्रेम-प्रसंगक खिस्सा रस लऽ लऽ कऽ प्रचारित करैत अछि। एहेन प्रवृत्ति कएटा आओर तिकड़मबाजमे देखल गेल अछि जे हिन्दीक  पैघ-पैघ नामक माला जपि कऽ मठोमाठ होअय चाहैत अछि। वस्तुतः ई चिन्ताजनक तथ्य थिक जे मैथिलीक नव-तूरकेँ हिन्दीक पैघ-पैघ नामक वैशाखीक एतेक जरुरति किऐक होइत छनि?
विदेहक इनक्वायरीक विवरण पढ़ि कऽ रोइयाँ ठाढ़ भऽ जाइत अछि। पहल-८६ आ आरम्भ-२३ मे जे पोल खूजल छल, अइ तथाकथित साहित्यकारक, तकरा बादे मैथिली साहित्यसँ बारि देल जेवाक चाहैत छल। मुदा विडम्बना देखू जे चेतना समिति सम्मानित कऽ देलक। मैथिल ब्राह्मण समाज, रहिका (मधुबनी) सन अँखिगर संस्थाकेँ चकचोन्ही लागि गेल, जखनकि संस्थामे विख्यात साहित्यकार उदयचन्द्र झा विनोद आ पढ़ाकू प्रोफेसरगण छथि। ई संशयविहीन अछि जे पुरस्कृत करेबामे विनोदजीक महत्वपूर्ण भूमिका रहल हैत। विदेह द्वारा रहस्योद्घाटन केलाक बावजूद एखन धरि चेतना समिति अथवा मैथिल ब्राह्मण समाज, रहिकाकेँ अपन पुरस्कार आपस करेवाक वा आने कोनोटा कार्रवाई करवाक बेगरता नहि बुझा रहल छै आ सर्द गुम्मी लधने अछि। एहेन जड़-संस्था सभ मैथिली साहित्यक उपकार करैत अछि वा अपकार? ई केना मानल जाय जे पहल-८६ वा आरम्भ-२३ अइ दुनू संस्थाक कोनो अधिकारी वा साहित्यकारकेँ पढ़ल नहि छलनि?
ई आश्चर्यजनक सत्य थिक जे मैथिलीक कएटा पैघ साहित्यकार पंकज पराशरक कृत्रिम काव्य आ आयातित शब्दावलीमे फँसि गेलाह अछि। विलम्बित कएक युग मे निबद्ध क भूमिकामे अनेरो विदेशी साहित्यकारगणक तीस-चालिस टा नाम ओहिना नहि गनाओल गेल अछि, अपन कविता केँ विश्वस्तरीय प्रमाणित करबाक लेल अँखिगर चोरे एना कऽ सकैत अछि। सम्भावना बनैत अछि जे डगलस केलनर जकाँ ओहू सभ कविक रचनाक भावभूमिक वा शब्दावलीक चोरिक प्रमाण एही काव्य-पोथीमे भेटि जाय। अंततः मि. हाइडक कोन ठेकान? मैथिलीमे तँ लोक विश्व-साहित्य कम पढ़ैत अछि। तकर नाजायज फायदा कोनो ब्लैकमेलर किऐक नहि उठाओत? आखिर टेक्नो-पोलिटिक्स की थिक- टेकनिकल पोलिटिक्स थिक, सैह किने? एकरा बदौलत झाँसा दऽ कऽ पाकिस्तानोक यात्रा कयल जा सकैत अछि। टेक्नो-पोलिटिक्सक बदौलत किरण-यात्री पुरस्कार, वैदेही-माहेश्वरी सिंह महेश पुरस्कार, एतेक धरि जे विदितजीक अकादमीयोक पुरस्कार लेल जा सकैत अछि। प्रदीप बिहारीक सुपुत्रक भातिज-कका सम्बन्धक मर्यादाक अतिक्रमण कयल जा सकैत अछि। प्रो. अरुण कमलक नये इलाके में सेंधमारी कऽ कऽ समय केँ अकानल जा सकैत अछि। आर तँ आर, अइ टेकनिकल पॉलिटिक्सक बदौलत जीवकान्तजी सन महारथी साहित्यकारसँ विलम्बित कएक युग... पोथीक समीक्षा लिखबा कऽ मिथिला दर्शन (५) सन पत्रिकामे छपवा कऽ स्थापित आ अमर भेल जा सकैत चछि। मैथिली साहित्यक सभसँ पैघ सफल औजार थिक टेक्नो पोलिटिक्स!
ई मानल जा सकैत अछि जे मिथिला दर्शनक सम्पादककेँ आरम्भ-२३ आ पहल-८६ कोलकातामे नहि भेटल होइन्हि। मुदा जीवकान्तजी नहि पढ़ने हेताह से मानबामे असौकर्य भऽ रहल अछि। जीवकान्त जी तँ प्रयाग शुक्लक चन्द्रभागा में सूर्योदय आ एही शीर्षकक नारायणजीक कविता (चन्द्रभागामे सूर्योदय) सेहो पढ़ने हेताह जे छपल अछि मैथिलीमे। तखन पंकज पराशरक समुद्रसँ असंख्य प्रश्न पूछऽवला कविताक भावार्थ किऐक नहि लगलनि जे समीक्षामे कलम तोड़ि प्रशंसा करऽ पड़लनि वा करा गेलनि? एकरा प्रायोजित समीक्षा किऐक नहि मानल जाय? की प्रयाग शुक्ल वा नारायणजीक समुद्र विषयक कवितासँ वेशी मौलिकता पंकज पराशरक कवितामे भेटलनि जीवकान्तजीकेँ? ओइ सभ कविताक कनियोँ छायाक शंको नहि भेलनि समीक्षककेँ? सभ्यताक सभटा मर्मान्तक पुकारक नोटिस लेबऽवला समीक्षककेँ साहित्यिक चोरि असभ्य आ मर्मान्तक पीड़ादायक नहि लगलनि? आब जीवकान्तजी सन समीक्षकक पोजीशन फॉल्स भऽ जेतनि से अन्दाज तँ मिथिला दर्शनक सम्पादककेँ नहियें रहनि, उदय चन्द्र झा विनोद केँ सेहो नहि रहनि। ई अभिज्ञान तँ पंकजे पराशर टाकेँ रहल हेतनि? बेचारे पराशर मुनिक आत्मा स्वर्गमे कनैत हेतनि आ पंकसँ जनमल जतेक कमल अछि सब अविश्वसनीय यथार्थक सामना करैत हेताह। पराशर गोत्री भऽ कऽ तीन बेर चोरि केनाइ पराशर महाकाव्यक रचयिता स्व. किरणजीकेँ सेहो कनबैत हेतनि। आखिर जीवकान्तजी साहित्यिक चोरिक नोटिस किए ने लेलनि, जखनकि हुनका विचारेँ मैथिलीक समीक्षक प्रायः मूर्खता पीबिकऽ विषवमन करैत अछि(विदेह-सदेह-२-२००९-१०)/ विनीत उत्पल-साक्षात्कार आ जीवकान्तजी स्वयं पंकज पराशरक चोरिवला कविता-पोथीक समीक्षक छथि, अपितु चौर्यकला प्रवीण कविक घोर प्रशंसक छथि। तखन अइ समीक्षा-आलेखमे अन्तर्निहित असीम-प्रशंसा साकांक्ष-पाठककेँ विष-वमन कोना ने लगौक? हुनका सन पढ़ाकू समीक्षक-पाठककेँ फॉल्स पोजीशनमे अननिहार एक्सपर्ट आ हैबिचुएटेड साहित्य-चोरसँ प्रशंसा आ पुरस्कार दुनू पाबि जाय तँ मैथिली-काव्यक ई उत्कर्ष थिक वा दुर्भाग्य? अंततः विदेह-सदेह टा किऐक निन्दा केलक एहि घटनाक? आन कोनो पत्रिका किऐक नहि केलक? डॉ. रमानन्द झा रमण इन्टरनेटपर निन्दा करैत छथि तँ घर-बाहर पत्रिकामे किऐक नहि जकर ओ सम्पादक छथि? चेतना समिति, पटना सम्मानित करैत अछि एहने-एहने साहित्यकारकेँ तखन अपने पत्रिकामे कोना निन्दा करत, जखनकि पुरस्कार आपसो नहि लैत अछि, जानकारी भेलाक वा साकांक्ष साहित्यकारक अनुरोध प्राप्त भेलाक बादो? नचिकेताजी नेटपर निन्दा करताह आ विदेहमे छपत तँ मिथिला दर्शनमे किऐक नहि निन्दा वा सूचना छपल? कारण स्पष्ट अछि- जीवकान्तक समीक्षा पंकज पराशरक काव्य-पोथीपर छपत, तखन ओही पोथीक चोरि कयल कविताक निन्दा कोना छपत? चारु भाग साहित्यिक आदर्श, मर्यादा आ नैतिकताक धज्जी उड़ि रहल अछि- पितामह आ आचार्यगणक समक्ष आ (अनजाने मे सही) हुनको लोकनिक द्वारा। मैथिल ब्राह्मण समाज, रहिका; चेतना समिति, पटना आ साहित्य अकादेमी, नई दिल्लीमे अन्ततः कोन अन्तर अछि वा रहल? एहेन नामी पुरस्कारक संचालन आ चयनकर्ता महारथी सभकेँ नव लोककेँ पढ़बाक बेगरता किऐक नहि बुझाइत छनि? बिना पढ़ने पुरस्कारक निर्णय वा समीक्षाक निर्णय कतेक उचित, जखन कि ई चोरि तेसर बेरक चोरि थिक आ से छपि-कऽ भण्डाफोड़ भेल अछि। एकरा वरेण्य आ वरीय साहित्यकारगण द्वारा काव्य-चोरि, आलेख-चोरिकेँ प्रश्रय देल जायब किऐक नहि मानल जाय, जखनकि आरम्भ, मैथिल-जन, पहल आ विदेह-सदेह पहिनहि छापि चुकल छल? की साहित्यिक चोरिकेँ प्रश्रय देब, दलाल वर्गकेँ प्रश्रय देब नहि थिक? एहेन सम्भावनायुक्त नव कविकेँ प्रश्रय देब मैथिली साहित्य लेल घातक अछि वा कल्याणकारी, जकरा मौलिकतापर तीन बेर प्रश्न चेन्ह लागल होइक? की पोथीक आकर्षक गत्ता देखि वा विदेशी कविगणक नामावली (भूमिकामे) पढ़ि कऽ समीक्षा लिखल जाइत अछि वा पुरस्कारक निर्णय लेल जाइत अछि? जँ से भेल हो तँ सब किछु ठिक्के छै भाइ?
अइ सबसँ तँ जीवकान्तजीक बात सत्य बुझाइत अछि जे समीक्षकगण दारू पीबि कऽ वा पैसा पीबि कऽ वा मूर्खता पीबि कऽ समीक्षा लिखैत छथि। डगलस केलनरक टेक्नोपोलिटिक्स तँ छपि गेल पहलमे चोरा कऽ। आब जीवकान्तजी, ज्ञान रंजनजी अथवा हिन्दी जगतक आन साहित्यकार-सम्पादकसँ पूछथु जे नोम चोम्स्कीवला रचना कतय गेल, की भेल, कोन नामें छपल? पंकज पराशरक नामें कि पदीप बिहारीजीक सुपुत्रक नामेँ (अनुवाद रूपमे)। ई रिसर्च एखन नहि भेल तँ भविष्यमे पुनः एकटा साहित्यिक चोरिक पोल खूजत? अंततः एकटा माँछकेँ कएटा पोखरिकेँ प्रदूषित करए देल जाय आ से कए बेर? उदय-कान्त बनि कऽ गारि पढ़वाक आदति तँ पुरान छनि डॉ. महाचोर केँ। ककरो सरीसृप कहि सकैत छथि (मैथिल-जन) आ कोनो परिवारमे घोंसिया कऽ विष वमन कऽ सकैत छथि। ऑक्टोपसक सभ गुणसँ परिपूर्ण डॉ. पॉल बाबाकेँ चोरिक भविष्यवाणी करवाक बड़का गुण छनि तेँ हिनका नामी फुटबॉल टीम द्वारा पोसल जाइत अछि, जाहिसँ विश्व-कपकेँ दौरान अइ अमोघ अस्त्रक उपयोग अपना हिसाबेँ कयल जा सकय।
सहरसा-कथागोष्ठीमे पठित हिनकर पहिल कथाक शीर्षक छल- हम पागल नहि छी। ई उद्घोषणा करवाक की बेगरता रहैक- से आइ लोककेँ बुझा रहल छैक। अविनाश आ पंकज पराशरक मामाजी तहिया हिनकर कथाकेँ टिप्पणीकक्रममे मैथिली-कथाक टर्निंग प्वाइन्ट मानने छलाह। आइ ओ टर्निंग प्वाइन्ट ठीके एक हिसाबेँ टर्निंग प्वाइन्ट प्रमाणित भेल, कारण कथाक ओहि शीर्षकमे सँ नहि हटि गेल अछि, हिनकर तेबारा चोरिसँ। हिनकर पहिल चोरि (अरुण कमलक कविता- नए इलाके में) क निन्दा प्रस्तावमे मामाजी आ डॉ. महेन्द्रकेँ छोड़ि, सहरसाक शेष सभ साहित्यकार हस्ताक्षर कऽ आरम्भकेँ पठौने छलाह। आइ ओ हस्ताक्षर नहि केनिहार सभ कन्छी काटि कऽ वाम-दहिन ताक-झाँक करवाक लेल बाध्य छथि। द्वैध-चरित्र आ दोहरा मानदण्डक परिणाम सैह होइत अछि। अविनाश तखन तँ देखार भऽ जाइत छथि जखन ओ विदेह-सदेह-२ मे लिखैत छथि जे एकरा सार्वजनिक नहि करबै। नुका कऽ सूचना देवाक कोन बेगरता? पंकज पराशरसँ सम्बन्ध खराब हेवाक डर वा कोनो टेक्नोपोलिटिक्स(?) केर चिन्ता?
विदेह-सदेह-२ क पाठकक संदेश तँ कएटा साहित्यकारकेँ देखार कऽ दैत अछि। जतय राजीव कुमार वर्मा, श्रीधरम, सुनील मल्लिक, श्यामानन्द चौधरी, गंगेश गुंजन, पी.के.चौधरी, सुभाष चन्द्र यादव, शम्भु कुमार सिंह, विजयदेव झा, भालचन्द झा, अजित मिश्र, के.एन.झा, प्रो.नचिकेता, बुद्धिनाथ मिश्र, शिव कुमार झा, प्रकाश चन्द्र झा, कामिनी, मनोज पाठक आदि अपन मुखर भाषामे प्रखरतापूर्वक निन्दनीय घटनाक निन्दा केलनि अछि, ततहि अविनाश, डॉ. रमानन्द झा रमण, विभारानीक झाँपल-तोपल शब्द आश्चर्य-भावक उद्रेक करैत अछि। मुदा संतोषक बात ई अछि जे पाठकक प्रबल भाव-भंगिमा साहित्यकारोक मेंहायल आवाजक कोनो चिन्ता नहि करैत अछि। विभारानी तँ कमाले कऽ देलनि। एहि ठाम मैथिली भाषा-साहित्यक एक सय समस्या गनेवाक उचित स्थान नहि छल। ई ओनाठ काल खोनाठ आ महादेवक विवाह कालक लगनी भऽ गेल। कोनो चोर बेर-बेर अपन कु-कृत्यक परिचय दऽ रहल अछि आ हुनका समय नष्ट करब बुझा रहल छनि आ चोरकेँ देखार केलासँ दुःख भऽ रहल छनि? ओ अपन प्रतिक्रियामे कतेक आत्म श्लाघा आ हीन-भावना व्यक्त केलनि अछि से अपने पत्र अपने ठंढ़ा भऽ कऽ पढ़ि कऽ बूझि सकैत छथि। हिन्दीयोमे एहिना भऽ रहल अछि, तेँ मैथिलीमे माफ कऽ देल जाय? आब हिन्दीसँ पूछि-पूछि कऽ मैथिलीमे कोनो काज होयत? विभारानी ज्योत्सना चन्द्रमकेँ ज्योत्सना मिलन केना कहैत छथि? हुनकर उपेक्षा कोना मानल जाय? ओ सभ साहित्यिक कार्यक्रममे नोतल जाइत छथि, सम्मान आ पुरस्कार पबैत छथि, पाठक द्वारा पठित आ चर्चित होइत छथि। समीक्षाक शिकाइत की उच्चवर्णीय (?) साहित्यकारकेँ मैथिलीमे नहि छनि? समीक्षाक दुःस्थिति सभ जातिक मैथिली साहित्यकार लेल एके रंग विषम अछि। ओइ मे जातिगत विभेद एना भेलए जे ब्राह्मण-समीक्षक, आरक्षणक दृष्टिकोणेँ निम्न जाति (?)क साहित्यकारक किछु बेशीए समीक्षा (सेहो सकारात्मक रूपेँ) केलनि अछि। समीक्षा आ आलोचनाक विषम स्थितिक कारणें जँ नैराश्यक शिकार भऽ जाय लेखक, तँ लेखकीय प्रतिबद्धताक की अर्थ रहि जायत? विभाजीकेँ बुझले नहि छनि जे हुनका लोकनिक बाद मैथिली महिला लेखनमे कामिनी, नूतन चन्द्र झा, वन्दना झा, माला झा आदि अपन तेवरक संग पदार्पण कऽ चुकल छथि। हुनका ने कामिनीक कविता संग्रह पढ़ल छनि आ ने इजोड़ियाक अङैठी मोड़। हुनका अपन गुरुदेवक बात मानि हिन्दीमे जाइसँ के कहिया रोकलकनि? ओ गेलो छथि हिन्दीमे। मातृभाषाक प्रेरणा अद्वितीय होइत छै। मैथिलीक जड़ संस्था अथवा समीक्षक सभपर प्रहार करबामे हमरा कोनो आपत्ति नहि, मुदा अर्थालाभ तँ एतय नगण्य अछिए। सामाजिक सम्मान विभाजीकेँ अवश्य भेटलनि अछि। समाजमे जड़लोक छै तँ चेतन लोक सेहो छैक। हुनकासँ मैथिली भाषा-साहित्य आ मिथिला-समाजकेँ पैघ आशा छै, हीनभाव वा आत्मश्लाघासँ ऊपर उठि काज करवाक बेगरता छैक। सक्षम छथि ओ। हुनका श्रेय लेवाक होड़सँ बँचवाक चाही। अन्यथा साहित्य अकादेमी प्रतिनिधि, दिवालियापन केर शिकार जूरीगण आ मैथिलीक सक्षम साहित्यकारमे की की अन्तर रहि जायत? विभारानीक विचलनक दिशा हमरा चिन्तित आ व्यथित करैत अछि। ओ दमगर लेखिका छथि, सशक्त रचना केलनि अछि, आइ ने काल्हि समीक्षकगण कलम उठेबापर बाध्य हेबे करताह। समीक्षकक कर्तव्यहीनतासँ कतौ लेखक निराश हो?
पंकज पराशरक श्रृंखलाबद्ध साहित्यिक चोरिपर सार्थक प्रतिक्रिया देब कोनो साहित्यकार लेल अनुचित नहि अछि कतहुसँ। साहित्यकार लेल साहित्यिक मूल्यक प्रति ओकर प्रतिबद्धता मुख्य कारक होइत अछि आ हेवाको चाही आ तकरा देखार करवाक बोल्डनेसो हेवाक चाही। चाहीवला पक्ष साहित्यमे बेशीए होइत अछि। एहेन-एहेन गम्भीर विषयपर साहित्य आ समाजक चुप्पी एहेन घटनाकेँ प्रोत्साहित करैत अछि आ जबदाह जड़ताकेँ बढ़बैत अछि, भाषा-साहित्यकेँ बदनाम तँ करिते अछि। जाधरि पंकज पराशरक चोरि-काव्यक समीक्षा लिखल जाइत रहत, विभारानीक मूल-रचनाक समीक्षा के लिखत? ककरा जरूरी बुझेतैक? विभारानी अपने तँ समीक्षा प्रायोजित नहि करओती? सक्षम लेखकक व्यवहारोक अपन स्तर होइत छै। तेँ संगठित भऽ चोरिक भर्त्सना हेवाक चाही।

एहि आलेखपर किछु पाठकक विचार:

SHIV KUMAR JHA TILLOO JAMSHEDPUR said...
Ramesh jee ken dhanyavad,satya gapp bajwak saahas "MITHILA" me aabi rahal achhi neek laagal,chhadma lokpriyatak khatir lok kichu ka sakait achhi..Pankaj Parasharak..aab charch karab seho nahi sohay laagi rahal..jatek ninda kayal jay kum parat.Muda RAMESH BABU HU APNE SABH NINDA KARAY CHHEE AA KICHU LOK KAHAIT CHHATHI PANKAJ JEE JUG-JUG JIWATHU,ONA HAMHU HUNAK DIRGHA JEEVANAK KAAMNA KARAIT CHHEE,PARANCH SABHAK JE JUG-JUG JIWAK KAAMNA KAYAL JAY MATRA PANKAJ PARASHARAK LEL NAHI.."SARBE BHAWANTU SUKHINAH"
RAMESH BABU APAN LEKHANI KEN GATI NIRANTAR RAKHAL JAY...


Rama Jha said...  
ehi vyakti pankaj parasharak ekta ehane ghrinit message ekta mahila je hamar mitra chathi, ke bhetal chhai, etek ghrinit je etay nai likhi sakai chhi,
आशीष अनचिन्हार said...  

जहाँ धरि पराशर- घटना अछि ओहि जतेक खिध्धाशं कएल जाए ततेक कम। मुदा रमेश भाइ विभारानीक कोन भाषा मे समीक्षा कएल जाए हिदीं मे की मैथिली मे । हमरा हिसाबे एकै रचना के दू- तीन भाषा मे मूल कहि प्रकाशित करब सेहो चोरि भेल। एहू पर धेआन देल जाए।
Rama Jha said...  
apan rachna ke dosar bhasha me mool kahi prakashit kaenai chori te nai bhelai, muda okara svayam dvara anoodit kahi prakashit karebak chahe, mool maithili se dosar bhasha (hindi aadi me), va dosar bhasha (hindi aadi se) maithili me.

पंकज पराशर उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ राजकमल चौधरी.....उर्फ...




सूचना: पंकज पराशरकेँ डगलस केलनर आ अरुण कमलक रचनाक चोरिक पुष्टिक बाद (proof file at http://www.box.net/shared/75xgdy37dr  and detailed article and reactions at http://www.videha.co.in/videhablog.html  बैन कए विदेह मैथिली साहित्य आन्दोलनसँ निकालि देल गेल अछि।
पंकज पराशर उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ राजकमल चौधरी.....उर्फ...
कतेक उर्फ एहि लेखकक बनत नहि जानि... राजकमल चौधरीक अप्रकाशित पद्य (आब विदेह मैथिली पद्य २००९-१० मे प्रकाशित पृ.३९-४०) बही-खाताक एहि धूर्तता, चोरि कला आ दंद-फंद करैवला पंकज पराशर..उर्फ..उर्फ.. [गौरीनाथ (अनलकान्त)क एहि चोर लेखकक लेल प्रयुक्त शब्द- सम्पादकीय अंतिका अक्टूबर-दिसंबर, 2009- जनवरी-मार्च, 2010- पंकज पराशर प्रसंगमे-] द्वारा हिसाब नामसँ छपबाओल गेल- देखू
राजकमल चौधरी
बही-खाता
एहि खातापर हम घसैत छी
संसारक सभटा हिसाब
...
...
हमर सभटा अपराध, ज्ञान...सँ लीपल पोतल
अछि एक्कर सभटा पाता
ई हम्मर लालबही थिक जीवन-खाता
जीवन-खाता
 पंकज पराशर उर्फ अरुण कमल उर्फ डगलस केलनर उर्फ उदयकान्त उर्फ ISP 220.227.163.105 , 164.100.8.3 , 220.227.174.243 उर्फ राजकमल चौधरी.....उर्फ...
द्वारा एकरा अपना नामसँ एहि तरहेँ चोराओल गेल
हिसाब
हिसाब कहिते देरी ठोर पर
उताहुल भेल रहैत अछि
किताब
जे भरि जिनगी लगबैत छथि
राइ-राइ के हिसाब-
दुनिया-जहान सँ फराक बनल
अंततः बनि कऽ रहि जाइत छथि
हिसाबक किताब।
२००६
एहि लेखकक खौँझा कऽ अपशब्दक प्रयोग बन्न नहि भेल अछि आ ई नाम बदलि-बदलि एखनो एहि सभ कार्यमे लिप्त अछि, आब ई अपन धंधा-चाकरी सेहो बदलि लेने अछि। स्पष्ट अछि जे एकरा विरुद्ध कड़गर डेग उठाओल जएबाक आवश्यकता अछि। उपरका समस्त जानकारी अहाँ गूगल, चिट्ठा जगतकेँ दी से आग्रह आ तकरा नीचाँ ई-पत्रपर सेहो अग्रसारित करी सेहो अनुरोध।
एहि लेखकक दिमागी हालतिक असली रूप एहि जालवृत्तपर सेहो भेटत जतए ओ न्जाम बदलि-बदलि अपन पुरना मालिकक कम्प्यूटरसँ घृणित पोस्ट करै छल।

 

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